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July 2021 1 59 Report
बिहसि लखनु बोले मृदुबानी। अहो मुनी महा भटमानी॥
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत ६ वन फँकि पहारू॥
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि डरि जाहीं॥
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहउँ रिस रोकी॥
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई ।।
बधे पापु अपकीरति हारें। मारतहूँ पा परिअ तुम्हारें।
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा ॥
जो बिलोकि अनुचित कहेउँ, छमहु महामुनि धीर।
पनि सरोष भगबंसमनि बोले गिरा गभीर॥​

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