बालगोबिन भगत के गायन को न तो माघ की सर्दी और न ही जेठ की गर्मी प्रभावित करती थी। गर्मी में उमस से भरी शामें भी उनके गायन से शीतल प्रतीत होती थी। गर्मियों में शाम के समय वे अपने घर के आंगन में कुछ संगीत प्रेमियों के साथ आसन लगा कर बैठ जाते थे। सबके पास खंजड़ी और करताल होते थे।बालगोबिन भगत एक पद गाते और उनके पीछे सभी लोग उसी पद को दोहराते हुए बार-बार गाते। धीरे-धीरे गीत का स्वर ऊंचा होने लगता था। स्वर की लय में एक निश्चित ताल और गति होती थी। उनके गीत मन से होते हुए तन पर हावी हो जाते थे। सुनने वाले और साथ गाने वाले अपनी सुध-बुध खो बैठते थे। बालगोबिन भगत उठ कर नाचने लगते और सभी लोग उनका साथ देते थे।
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बालगोबिन भगत के गायन को न तो माघ की सर्दी और न ही जेठ की गर्मी प्रभावित करती थी। गर्मी में उमस से भरी शामें भी उनके गायन से शीतल प्रतीत होती थी। गर्मियों में शाम के समय वे अपने घर के आंगन में कुछ संगीत प्रेमियों के साथ आसन लगा कर बैठ जाते थे। सबके पास खंजड़ी और करताल होते थे।बालगोबिन भगत एक पद गाते और उनके पीछे सभी लोग उसी पद को दोहराते हुए बार-बार गाते। धीरे-धीरे गीत का स्वर ऊंचा होने लगता था। स्वर की लय में एक निश्चित ताल और गति होती थी। उनके गीत मन से होते हुए तन पर हावी हो जाते थे। सुनने वाले और साथ गाने वाले अपनी सुध-बुध खो बैठते थे। बालगोबिन भगत उठ कर नाचने लगते और सभी लोग उनका साथ देते थे।