श्री शिवप्रसाद मिश्र रुद्र द्वारा रचित ‘एही ठैयां झुलनी हेरानी हो रामा!’ एक मर्मस्पर्शी कथा है। इसका शीर्षक प्रतिकार्थ को व्यक्त करता है। इसका अर्थ है कि यह वही स्थान है जहां मेरे नाक की लौंग खो गई थी परंतु यहां झुलनी नाक की लौंग या नथनी सुहाग का प्रतीक है। टुन्नू भले ही दुलारी का सुहाग नहीं था परंतु दुलारी के मन में टुन्नू का वही स्थान था जो एक पत्नी का अपने पति के लिए होता है।
यह शीर्षक एक मार्मिक घटना को व्यक्त करता है। टुन्नू के प्रति दुलारी का प्यार अत्यंत गहरा और निष्पक्ष था। उसके प्रेम में दिखावे जैसी कोई हीन भावना नहीं थी। हमारे विचार से इससे उपयुक्त शीर्षक इस कहानी के लिए शायद ही और होता।
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श्री शिवप्रसाद मिश्र रुद्र द्वारा रचित ‘एही ठैयां झुलनी हेरानी हो रामा!’ एक मर्मस्पर्शी कथा है। इसका शीर्षक प्रतिकार्थ को व्यक्त करता है। इसका अर्थ है कि यह वही स्थान है जहां मेरे नाक की लौंग खो गई थी परंतु यहां झुलनी नाक की लौंग या नथनी सुहाग का प्रतीक है। टुन्नू भले ही दुलारी का सुहाग नहीं था परंतु दुलारी के मन में टुन्नू का वही स्थान था जो एक पत्नी का अपने पति के लिए होता है।यह शीर्षक एक मार्मिक घटना को व्यक्त करता है। टुन्नू के प्रति दुलारी का प्यार अत्यंत गहरा और निष्पक्ष था। उसके प्रेम में दिखावे जैसी कोई हीन भावना नहीं थी। हमारे विचार से इससे उपयुक्त शीर्षक इस कहानी के लिए शायद ही और होता।
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