लेखिका के पिता दोहरे व्यक्तित्व के व्यक्ति थे। आधुनिकता के समर्थक थे। वह औरतों को केवल रसोई तक सीमित नहीं देखना चाहते थे ।उनके अनुसार औरतों को अपनी प्रतिभा और क्षमता का उपयोग घर के बाहर देश की स्थिति सुधारने के लिए करना चाहिए। इससे यश, प्रतिष्ठा और सम्मान सब कुछ मिलता है। लेकिन जहां वे आधुनिक विचारों के समर्थक थे ,वही दकियानूसी विचारों के भी थे। उन्हें अपनी इज्जत प्यारी थी ।जहां वे औरतों को रसोई से बाहर देखना चाहते थे, वही उन्हें यह भी बर्दाश्त नहीं होता था कि वह लड़कों के साथ स्वतंत्रता की लड़ाई में कदम से कदम मिलाकर चले। वे औरतों की स्वतंत्रता को घर की चारदीवारी से दूर नहीं देखना चाहते थे, परंतु लेखिका के लिए पिताजी की दी हुई आजादी के दायरे में चलना कठिन था ।इसलिए उसकी अपने पिता से वैचारिक टकराहट थी।
vivah ke vishay per bhi pita aur putri ke vichar takrar pita unka vivah apni pasand ke ladke ke sath karna chahte the kintu lekhika ne rajendra Yadav ji se prem vivah karke pita ki ichcha ke viruddh jaane ka sahas Kiya
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लेखिका के पिता दोहरे व्यक्तित्व के व्यक्ति थे। आधुनिकता के समर्थक थे। वह औरतों को केवल रसोई तक सीमित नहीं देखना चाहते थे ।उनके अनुसार औरतों को अपनी प्रतिभा और क्षमता का उपयोग घर के बाहर देश की स्थिति सुधारने के लिए करना चाहिए। इससे यश, प्रतिष्ठा और सम्मान सब कुछ मिलता है। लेकिन जहां वे आधुनिक विचारों के समर्थक थे ,वही दकियानूसी विचारों के भी थे। उन्हें अपनी इज्जत प्यारी थी ।जहां वे औरतों को रसोई से बाहर देखना चाहते थे, वही उन्हें यह भी बर्दाश्त नहीं होता था कि वह लड़कों के साथ स्वतंत्रता की लड़ाई में कदम से कदम मिलाकर चले। वे औरतों की स्वतंत्रता को घर की चारदीवारी से दूर नहीं देखना चाहते थे, परंतु लेखिका के लिए पिताजी की दी हुई आजादी के दायरे में चलना कठिन था ।इसलिए उसकी अपने पिता से वैचारिक टकराहट थी।vivah ke vishay per bhi pita aur putri ke vichar takrar pita unka vivah apni pasand ke ladke ke sath karna chahte the kintu lekhika ne rajendra Yadav ji se prem vivah karke pita ki ichcha ke viruddh jaane ka sahas Kiya