अग्रसेन धाम में चल रही भागवत कथा के तीसरे दिन पं. विजय शंकर मेहता ने हिरण्यकश्यप की कथा सुनाते हुए कहा कि राक्षस के घर भी प्रहलाद जैसे भक्त का जन्म हो सकता है। माता कयाधू ने प्रहलाद के लालन-पालन में चरित्र निर्माण करते हुए भक्ति और आध्यात्म को आधार बनाया। माता-पिता के संस्कार से ही ध्रुव और प्रहलाद जैसे चरित्र पैदा होते हैं। उन्होंने कहा कि संतान को योग्य और संस्कारी बनाना माता-पिता का कर्तव्य है। इस कर्तव्य को समझना आज के परिदृष्य में बेहद जरूरी है। उन्होंने आगे सुनीति का उदाहरण देते हुए कहा कि अगर सुनीति जैसी माता हो तो ध्रुव जैसा पुत्र होता है और सुरुचि जैसी होने पर धुंधकारी और उत्तम जैसा पुत्र होता है। उन्होंने जड़ भारत की कथा सुनाते हुए कहा कि जड़ भारत का अर्थ भोलेपन से है। आज मनुष्य में सरलता समाप्त हो रही है। हर जगह वैमनस्य षड़यंत्र दिखाई दे रहा है। अगर हम अपने भोलेपन, सहजता को बचाएं तो एक स्वस्थ समाज रचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि अजामिल वृद्ध को भी काम ने डस लिया। काम आंखों के जरिए भीतर उतरता है। आंखों से क्या देखें, कब देखें यह महत्वपूर्ण है। समय निकालकर अपनी आंखें बंदकर उर्जा बढ़ाएं। संयोजक शिवनारायण मूंधड़ा ने बताया कि शनिवार को कथा में पं. मेहता ने श्रोताओं के प्रकार का विवेचन किया। यजमान लक्ष्मण प्रसाद, सिद्धेश्वर, महेश अग्रवाल ने बताया कि रविवार को कथा में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव प्रसंग मनाया जाएगा।
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sangya yogya hai vah sangya hai bhav vachak sangya pita sangya hai vyakti vachak sangya ki kriya hai santan bhi vyakti vachak sangya hai
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अग्रसेन धाम में चल रही भागवत कथा के तीसरे दिन पं. विजय शंकर मेहता ने हिरण्यकश्यप की कथा सुनाते हुए कहा कि राक्षस के घर भी प्रहलाद जैसे भक्त का जन्म हो सकता है। माता कयाधू ने प्रहलाद के लालन-पालन में चरित्र निर्माण करते हुए भक्ति और आध्यात्म को आधार बनाया। माता-पिता के संस्कार से ही ध्रुव और प्रहलाद जैसे चरित्र पैदा होते हैं। उन्होंने कहा कि संतान को योग्य और संस्कारी बनाना माता-पिता का कर्तव्य है। इस कर्तव्य को समझना आज के परिदृष्य में बेहद जरूरी है। उन्होंने आगे सुनीति का उदाहरण देते हुए कहा कि अगर सुनीति जैसी माता हो तो ध्रुव जैसा पुत्र होता है और सुरुचि जैसी होने पर धुंधकारी और उत्तम जैसा पुत्र होता है। उन्होंने जड़ भारत की कथा सुनाते हुए कहा कि जड़ भारत का अर्थ भोलेपन से है। आज मनुष्य में सरलता समाप्त हो रही है। हर जगह वैमनस्य षड़यंत्र दिखाई दे रहा है। अगर हम अपने भोलेपन, सहजता को बचाएं तो एक स्वस्थ समाज रचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि अजामिल वृद्ध को भी काम ने डस लिया। काम आंखों के जरिए भीतर उतरता है। आंखों से क्या देखें, कब देखें यह महत्वपूर्ण है। समय निकालकर अपनी आंखें बंदकर उर्जा बढ़ाएं। संयोजक शिवनारायण मूंधड़ा ने बताया कि शनिवार को कथा में पं. मेहता ने श्रोताओं के प्रकार का विवेचन किया। यजमान लक्ष्मण प्रसाद, सिद्धेश्वर, महेश अग्रवाल ने बताया कि रविवार को कथा में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव प्रसंग मनाया जाएगा।