कितने प्यार से किसी ने
बरसों पहले मुझे बोया था
हवा के मंद मंद झोंको ने
लोरी गाकर सुलाया था ।
कितना विशाल घना वृक्ष
आज मैं हो गया हूँ
फल फूलो से लदा
पौधे से वृक्ष हो गया हूँ ।
कभी कभी मन में
एकाएक विचार करता हूँ
आप सब मानवों से
एक सवाल करता हूँ ।
दूसरे पेड़ों की भाँति
क्या मैं भी काटा जाऊँगा
अन्य वृक्षों की भाँति
क्या मैं भी वीरगति पाउँगा ।
क्यों बेरहमी से मेरे सीने
पर कुल्हाड़ी चलाते हो
क्यों बर्बरता से सीने
को छलनी करते हो ।
मैं तो तुम्हारा सुख
दुःख का साथी हूँ
मैं तो तुम्हारे लिए
साँसों की भाँति हूँ।
मैं तो तुम लोगों को
देता हीं देता हूँ
पर बदले में
कछ नहीं लेता हूँ ।
प्राण वायु देकर तुम पर
कितना उपकार करता हूँ
फल-फूल देकर तुम्हें
भोजन देता हूँ।
दूषित हवा लेकर
स्वच्छ हवा देता हूँ
पर बदले में कुछ नहीं
तुम से लेता हूँ ।
ना काटो मुझे
यही मेरा दर्द है।
यही मेरी गुहार है।
यही मेरी पुकार है
Answer:
पर्यावरण केलेल्या बाबीसंबंधी बोलताना बचाना हमारा ध्येय होय
सबके पास शिवाय भर वेळ होय
पर्यावरण अगर नाहीत रहेगा सुरक्षित
होय जायेगा सबकुछ दूषित
भले त्याच आपण पेड़ लगाये एक
पूरी तरह करे उसकी देखरेख
सौर उर्जा का करे सर्व वापर
कमी करे ताप विद्युत् का उपभोग
रासायनिक खाद का कमी करे छिडकाव
भूमि प्रदूषित
होण्यापासून बचाव चौकारो का समुद्री रीति से निपटारा
फैक्ट्रीयो में जब सौर उपकरण होता
है
तब जा रहा है वायु प्रदूषण में आपकी कम आतीगी है तब जाकर पर्यावरणीय प्रदूषण में कम
आतिशी है बीमारिया अपने चलीयरावा मी
प्रकीर्ति
आईचे आम्ही प्रेमळ प्रेम नाही तर
काही जातींचे संरक्षण नाही .. दिवसा सूरजच्या रोशनीमध्ये
प्रकृति
रात्री शीतल चांदनी लाटी आहे ...... जगत्
जल से पितृज्ञानी प्रकृति
आणि बारिश में रिमझिम जल बरसाती है प्रकृति ... ..
दिन-प्राणदायिनी हवा रात्री चलाती आहे प्रकृति
मोफत मध्ये आम्हाला ढेरों साधन उपलब्ध कराती आहे प्रकृति ... ..
कहीं रेगिस्तान इतका कहीं बर्फ बिछा रखे आहेत इसने
कहीं पर्वत खड़े किए इतका कहीं युफ्रेटिस बहा रखे आहेत इसने .......
गहरे खाई कहीं खोदे इतका कहीं बंजर जमीन बना रखे आहेत इसने
कहीं फूलों की वादियाँ बसाई इतका कहीं हरियाली की चादर बिछाई आहे इसने.
मानवाचा वापर करणे, त्यावरून कोणताही अतराज नाही परंतु मानवीय
सीमा नसल्यामुळेच या वास्तूची जागा नसते …….
जेव्हा-जेव्हा मानव उदय होतो,
तेव्हा-नंतर चेतवानीचा अनुभव येतो तेव्हा-जेव्हा त्याला चेतावणी दिली जाते तेव्हा जातीची, नंतर-सजावट केली जाते….
विकासाच्या शर्यतीत प्रदक्षिणा करणे त्रासदायक नसते, परंतु ती कोणतीही
गेम-स्टोरी नसते… ..
मानव स्वभावानुसार निर्वासित माणसांच्या स्वभावाचे गुणधर्म समृद्धीचे असतात
, जे आपल्या सर्वांगीण प्रेमात असतात. …….
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पेड़ का दर्द
कितने प्यार से किसी ने
बरसों पहले मुझे बोया था
हवा के मंद मंद झोंको ने
लोरी गाकर सुलाया था ।
कितना विशाल घना वृक्ष
आज मैं हो गया हूँ
फल फूलो से लदा
पौधे से वृक्ष हो गया हूँ ।
कभी कभी मन में
एकाएक विचार करता हूँ
आप सब मानवों से
एक सवाल करता हूँ ।
दूसरे पेड़ों की भाँति
क्या मैं भी काटा जाऊँगा
अन्य वृक्षों की भाँति
क्या मैं भी वीरगति पाउँगा ।
क्यों बेरहमी से मेरे सीने
पर कुल्हाड़ी चलाते हो
क्यों बर्बरता से सीने
को छलनी करते हो ।
मैं तो तुम्हारा सुख
दुःख का साथी हूँ
मैं तो तुम्हारे लिए
साँसों की भाँति हूँ।
मैं तो तुम लोगों को
देता हीं देता हूँ
पर बदले में
कछ नहीं लेता हूँ ।
प्राण वायु देकर तुम पर
कितना उपकार करता हूँ
फल-फूल देकर तुम्हें
भोजन देता हूँ।
दूषित हवा लेकर
स्वच्छ हवा देता हूँ
पर बदले में कुछ नहीं
तुम से लेता हूँ ।
ना काटो मुझे
ना काटो मुझे
यही मेरा दर्द है।
यही मेरी गुहार है।
यही मेरी पुकार है
Answer:
पर्यावरण केलेल्या बाबीसंबंधी बोलताना बचाना हमारा ध्येय होय
सबके पास शिवाय भर वेळ होय
पर्यावरण अगर नाहीत रहेगा सुरक्षित
होय जायेगा सबकुछ दूषित
भले त्याच आपण पेड़ लगाये एक
पूरी तरह करे उसकी देखरेख
सौर उर्जा का करे सर्व वापर
कमी करे ताप विद्युत् का उपभोग
रासायनिक खाद का कमी करे छिडकाव
भूमि प्रदूषित
होण्यापासून बचाव चौकारो का समुद्री रीति से निपटारा
फैक्ट्रीयो में जब सौर उपकरण होता
है
तब जा रहा है वायु प्रदूषण में आपकी कम आतीगी है तब जाकर पर्यावरणीय प्रदूषण में कम
आतिशी है बीमारिया अपने चलीयरावा मी
प्रकीर्ति
आईचे आम्ही प्रेमळ प्रेम नाही तर
काही जातींचे संरक्षण नाही .. दिवसा सूरजच्या रोशनीमध्ये
प्रकृति
रात्री शीतल चांदनी लाटी आहे ...... जगत्
जल से पितृज्ञानी प्रकृति
आणि बारिश में रिमझिम जल बरसाती है प्रकृति ... ..
दिन-प्राणदायिनी हवा रात्री चलाती आहे प्रकृति
मोफत मध्ये आम्हाला ढेरों साधन उपलब्ध कराती आहे प्रकृति ... ..
कहीं रेगिस्तान इतका कहीं बर्फ बिछा रखे आहेत इसने
कहीं पर्वत खड़े किए इतका कहीं युफ्रेटिस बहा रखे आहेत इसने .......
गहरे खाई कहीं खोदे इतका कहीं बंजर जमीन बना रखे आहेत इसने
कहीं फूलों की वादियाँ बसाई इतका कहीं हरियाली की चादर बिछाई आहे इसने.
मानवाचा वापर करणे, त्यावरून कोणताही अतराज नाही परंतु मानवीय
सीमा नसल्यामुळेच या वास्तूची जागा नसते …….
जेव्हा-जेव्हा मानव उदय होतो,
तेव्हा-नंतर चेतवानीचा अनुभव येतो तेव्हा-जेव्हा त्याला चेतावणी दिली जाते तेव्हा जातीची, नंतर-सजावट केली जाते….
विकासाच्या शर्यतीत प्रदक्षिणा करणे त्रासदायक नसते, परंतु ती कोणतीही
गेम-स्टोरी नसते… ..
मानव स्वभावानुसार निर्वासित माणसांच्या स्वभावाचे गुणधर्म समृद्धीचे असतात
, जे आपल्या सर्वांगीण प्रेमात असतात. …….