बहुत लम्बी प्रतीक्षा के बाद राजा दशरथ के चार पुत्र हुए I
"कौशल्या के रामचंद्र थे ,कैकेयी के भरत सुनाम ,II
और सुमित्रा जननी के थे ,सुत लक्ष्मण शत्रुघ्न ललाम I
सब प्रकार से सफल काम था ,कृति पिता दशरथ का धाम II
चारो धामों की यात्रा से मिला अयोध्या को विश्राम I
गुरु विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को दशरथ से मांगकर अपने साथ वहां ले जाते हैं ,जहाँ उनके चरणों के स्पर्श से अहल्या का उद्धार हो जाता है ,ताड़का वध होता है और धनुष यज्ञ के लिए जनकपुर पहुँच जाते हैं I सारे राजा के धनुष भंग करने की हिम्मत नहीं होने के कारण राजा जनक चिंतित हो जाते हैं I
"रहे कुमारी ही वैदेही ,लौट जाएँ सब पृथ्वी पाल I
जान लिया मैंने जगती में ,नहीं कहीं मई का लाल II
लक्ष्मण इसे सह न सके और गुरु विश्वामित्र से आज्ञा लेकर पल भर में धनुष तोड़ दिया Iउसकी टंकार से परशुराम महेंद्रगिरी पर्वत से आ जाते हैं I और लक्ष्मण उनके क्रोध पर हँसते हैं परशुराम अपना धनुष श्री राम के हाथ में जैसे ही डालना चाहते हैं I
लो प्रत्यंचा चढ़ाओ लेकिन धनुष अपने आप श्री राम के हाथ में चला जाता है Iऔर महिर्षि कोआश्चर्य होता है I वो बोल उठते हैं क्या रामावतार हो गया पुनः लौट जाते हैं I चारो भाइयों के साथ चारो भाइयों की शादी होती है I जनक जी के सन्देश पर राजा दशरथ बारात लेकर आते हैं जिसमें :राम के साथ सीता ,भरत के साथ माण्डवी ,लक्ष्मण के साथ उर्मिला और शत्रुघ्न के साथ श्रुति-कीर्ति का विवाह हो जाता है I राजा दशरथ सबों के साथ अयोध्या लौटकर श्री राम के राज्याभिषेक की घोषणा करते हैं I
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बहुत लम्बी प्रतीक्षा के बाद राजा दशरथ के चार पुत्र हुए I
"कौशल्या के रामचंद्र थे ,कैकेयी के भरत सुनाम ,II
और सुमित्रा जननी के थे ,सुत लक्ष्मण शत्रुघ्न ललाम I
सब प्रकार से सफल काम था ,कृति पिता दशरथ का धाम II
चारो धामों की यात्रा से मिला अयोध्या को विश्राम I
गुरु विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को दशरथ से मांगकर अपने साथ वहां ले जाते हैं ,जहाँ उनके चरणों के स्पर्श से अहल्या का उद्धार हो जाता है ,ताड़का वध होता है और धनुष यज्ञ के लिए जनकपुर पहुँच जाते हैं I सारे राजा के धनुष भंग करने की हिम्मत नहीं होने के कारण राजा जनक चिंतित हो जाते हैं I
"रहे कुमारी ही वैदेही ,लौट जाएँ सब पृथ्वी पाल I
जान लिया मैंने जगती में ,नहीं कहीं मई का लाल II
लक्ष्मण इसे सह न सके और गुरु विश्वामित्र से आज्ञा लेकर पल भर में धनुष तोड़ दिया Iउसकी टंकार से परशुराम महेंद्रगिरी पर्वत से आ जाते हैं I और लक्ष्मण उनके क्रोध पर हँसते हैं परशुराम अपना धनुष श्री राम के हाथ में जैसे ही डालना चाहते हैं I
लो प्रत्यंचा चढ़ाओ लेकिन धनुष अपने आप श्री राम के हाथ में चला जाता है Iऔर महिर्षि कोआश्चर्य होता है I वो बोल उठते हैं क्या रामावतार हो गया पुनः लौट जाते हैं I चारो भाइयों के साथ चारो भाइयों की शादी होती है I जनक जी के सन्देश पर राजा दशरथ बारात लेकर आते हैं जिसमें :राम के साथ सीता ,भरत के साथ माण्डवी ,लक्ष्मण के साथ उर्मिला और शत्रुघ्न के साथ श्रुति-कीर्ति का विवाह हो जाता है I राजा दशरथ सबों के साथ अयोध्या लौटकर श्री राम के राज्याभिषेक की घोषणा करते हैं I