opkyadav833
वह एक दस वर्ष का बालक था। अचानक उसकी नजर एक उड़ती हुई गौरैया पर पड़ी। उसने अपनी एयरगन से चिडि़या पर निशाना लगाया और गोली चला दी। गोली एकदम निशाने पर लगी। देखते ही देखते वह गौरेया जमीन पर आ गिरी। बालक ने उसे उठाया। उसने पक्षी को बहुत ध्यान से देखा। उसकी गर्दन पर पीले निशान देखकर वह बालक आश्चर्यचकित रह गया। उसने ऐसी गौरैया पहले कभी नहीं देखी थी। वह गौरैया को लेकर अपने मामा अमीरूदीन तैयबजी के पास पहुँचा और उसके बारे में पूछने लगा। मामा के पास उसके सवालों का कोई जवाब नहीं था। इससे बालक बेचैन हो उठा। वह हर किसी से उस चिडि़या के बारे में पूछने लगा।
बालक की बेचैनी देखकर उसे उसके मामा बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बी.एच.एम.एस.) ले गये और संस्था के सचिव डब्यूहाल.एस.मिलार्ड से मिलवाया। एक छोटे से बच्चे की उस चिडि़या में इतनी रूचि देखकर मिलार्ड बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने बताया कि इस चिडि़या का नाम पीले गले वाली गौरैया (Yellow throted Sparrow) है। उन्होंने बालक को वहाँ पर संग्रहीत अन्य चिडि़यों के बारे में भी बताया।
उन्हें देखकर बालक का मुँह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया। वह बोला- क्या हमारे देश इतनी तरह की चिडि़या होती हैं? इसपर मिलार्ड ने कहा, मेरे बच्चे इस भारत में इससे भी ज्यादा खूबसूरत और रंग-बिरंगी चिडि़या पाई जाती हैं। पर अफसोस कि हमारे पास उनका अभी कोई प्रामाणिक रिकॉर्ड नहीं है।
मिलार्ड के वक्ताव्यर से वह बालक बहुत प्रभावित हुआ और मन ही मन उसने उन चिडि़यों के बारे में जानने का निश्चय किया। आगे चलकर वही बालक विश्व प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली (पूरा नाम: सालिम मोइजुद्दीन अब्दुल अली) के नाम से जाना गया। उस घटना के बाद सालिम का जीवन का नजरिया ही बदल गया। उन्होंने उसी क्षण पक्षियों के अध्ययन को अपने जीवन का ध्येय बना लिया।
जीवन की कठिन परिस्थितियों को झेलते हुए उन्होंने अपने इरादे को कायम रखा और पक्षियों पर अनुसंधान कार्य किया। अपने शोध कार्यों को अनुभवों को बाँटने के उद्देश्य से उन्होंने ‘द बुक ऑफ इंडियन बर्ड्स’ नामक यह पुस्तक लिखी, जो सन 1941 में प्रकाशित हुई। उनकी इस पुस्तक ने ही लोकप्रियता के नए रिकार्ड स्थापित हुए और कई भाषाओं में अनुवाद हुआ।
इस पुस्तक के अब तक 13 संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं और अब तक 80 हजार से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं। इस पुस्तक की उपयोगिता को दृष्टिगत रखते हुए भारत सरकार ने वैज्ञानिक जागरूकता वर्ष 2004 में आर वी पी एस पी/ एन सी एस टी सी, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी, मुम्बई के सहयोग से इस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद 'भारत के पक्षी' नाम से प्रकाशित किया है।
370 पृष्ठ की यह पुस्तक समस्त भारतीय पक्षियों का कोश है, जिसमें उनकी सभी प्रमुख विशेषताओं का सचित्र वर्णन किया गया है। इस पुस्तक के 1979 में प्रकाशित ग्यारहवें संस्करण का डॉ0 सालिम अली ने अन्तिम बार संशोधन व विस्तारीकरण किया था। उस संस्करण में 296 पक्षी प्रजातियों का वर्णन व चित्रण किया गया था। बाद में सन 1992 के आसपास इस पुस्तक को भारत के सभी जैवभौगोलिक भागों की सामान्य व रोचक पक्षी प्रजातियों के विवरण से परिपूर्ण करके भारतीय उपमाद्वीप के लिए एक उपयोगी फील्ड गाइड के रूप में सम्पादित करने का निर्णय लिया गया। इस संशोधित व संवर्धित पुस्तक को डॉ0 सालिम अली की जन्म शताब्दी के सुअवसर पर, भारत में पक्षी प्रेक्षण को बढ़ावा देने में उनके मौलिक योगदान को स्मरणीय रखने हेतु प्रस्तुत किया गया है।
इस शताब्दी संस्करण में कुल 538 प्रजातियों का विवरण है। सभी विवरणों को डॉ0 सालिम अली की भाषा—शैली में ही रखने के अभिप्राय से सामग्री को उन्हीं की अन्य पुस्तकों से प्राप्त किया गया है। जाहिर सी बात है कि अपनी इन तमाम विशेषताओं के कारण यह एक ऐसी अतुलनीय और संग्रहणीय पुस्तक बन गयी है, जिसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है।
पुस्तक: भारत के पक्षी (The Book of Indian Birds) लेखक: सालिम अली (Salim Ali) अनुवादक: गायत्री उगरा प्रकाशक: बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी, हौर्नबिल हाउस, शहीद भगत सिंह मार्ग, मुम्बई—400001 पृष्ठ: 370 (हार्डबाउंड) मूल्य: 500 रू0
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बालक की बेचैनी देखकर उसे उसके मामा बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बी.एच.एम.एस.) ले गये और संस्था के सचिव डब्यूहाल.एस.मिलार्ड से मिलवाया। एक छोटे से बच्चे की उस चिडि़या में इतनी रूचि देखकर मिलार्ड बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने बताया कि इस चिडि़या का नाम पीले गले वाली गौरैया (Yellow throted Sparrow) है। उन्होंने बालक को वहाँ पर संग्रहीत अन्य चिडि़यों के बारे में भी बताया।
उन्हें देखकर बालक का मुँह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया। वह बोला- क्या हमारे देश इतनी तरह की चिडि़या होती हैं? इसपर मिलार्ड ने कहा, मेरे बच्चे इस भारत में इससे भी ज्यादा खूबसूरत और रंग-बिरंगी चिडि़या पाई जाती हैं। पर अफसोस कि हमारे पास उनका अभी कोई प्रामाणिक रिकॉर्ड नहीं है।
मिलार्ड के वक्ताव्यर से वह बालक बहुत प्रभावित हुआ और मन ही मन उसने उन चिडि़यों के बारे में जानने का निश्चय किया। आगे चलकर वही बालक विश्व प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली (पूरा नाम: सालिम मोइजुद्दीन अब्दुल अली) के नाम से जाना गया। उस घटना के बाद सालिम का जीवन का नजरिया ही बदल गया। उन्होंने उसी क्षण पक्षियों के अध्ययन को अपने जीवन का ध्येय बना लिया।
जीवन की कठिन परिस्थितियों को झेलते हुए उन्होंने अपने इरादे को कायम रखा और पक्षियों पर अनुसंधान कार्य किया। अपने शोध कार्यों को अनुभवों को बाँटने के उद्देश्य से उन्होंने ‘द बुक ऑफ इंडियन बर्ड्स’ नामक यह पुस्तक लिखी, जो सन 1941 में प्रकाशित हुई। उनकी इस पुस्तक ने ही लोकप्रियता के नए रिकार्ड स्थापित हुए और कई भाषाओं में अनुवाद हुआ।
इस पुस्तक के अब तक 13 संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं और अब तक 80 हजार से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं। इस पुस्तक की उपयोगिता को दृष्टिगत रखते हुए भारत सरकार ने वैज्ञानिक जागरूकता वर्ष 2004 में आर वी पी एस पी/ एन सी एस टी सी, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी, मुम्बई के सहयोग से इस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद 'भारत के पक्षी' नाम से प्रकाशित किया है।
370 पृष्ठ की यह पुस्तक समस्त भारतीय पक्षियों का कोश है, जिसमें उनकी सभी प्रमुख विशेषताओं का सचित्र वर्णन किया गया है। इस पुस्तक के 1979 में प्रकाशित ग्यारहवें संस्करण का डॉ0 सालिम अली ने अन्तिम बार संशोधन व विस्तारीकरण किया था। उस संस्करण में 296 पक्षी प्रजातियों का वर्णन व चित्रण किया गया था। बाद में सन 1992 के आसपास इस पुस्तक को भारत के सभी जैवभौगोलिक भागों की सामान्य व रोचक पक्षी प्रजातियों के विवरण से परिपूर्ण करके भारतीय उपमाद्वीप के लिए एक उपयोगी फील्ड गाइड के रूप में सम्पादित करने का निर्णय लिया गया। इस संशोधित व संवर्धित पुस्तक को डॉ0 सालिम अली की जन्म शताब्दी के सुअवसर पर, भारत में पक्षी प्रेक्षण को बढ़ावा देने में उनके मौलिक योगदान को स्मरणीय रखने हेतु प्रस्तुत किया गया है।
इस शताब्दी संस्करण में कुल 538 प्रजातियों का विवरण है। सभी विवरणों को डॉ0 सालिम अली की भाषा—शैली में ही रखने के अभिप्राय से सामग्री को उन्हीं की अन्य पुस्तकों से प्राप्त किया गया है। जाहिर सी बात है कि अपनी इन तमाम विशेषताओं के कारण यह एक ऐसी अतुलनीय और संग्रहणीय पुस्तक बन गयी है, जिसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है।
पुस्तक: भारत के पक्षी (The Book of Indian Birds)
लेखक: सालिम अली (Salim Ali)
अनुवादक: गायत्री उगरा
प्रकाशक: बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी, हौर्नबिल हाउस, शहीद भगत सिंह मार्ग, मुम्बई—400001
पृष्ठ: 370 (हार्डबाउंड)
मूल्य: 500 रू0
Answer:
Salim Ali ki kya kaisi thi