आज शहरों के बढ़ते विकास ने इसको शहरी सभ्यता का नाम दे दिया है। शहरी विकास के क्रम में गाँव से कस्बा, कसबे से उपनगर और नगर से महानगर विकसित हो गए। भारत के कुछ महानगरों की जनसंख्या एक करोड़ की संख्या पार कर चुकी है। इस कारण शहरों की दशा बहुत खराब हो गयी है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे महानगरों में हर प्रकार का प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। लाखों लोग झुग्गी-झोपड़ियों में जीवन निर्वाह कर रहे हैं जहां खुली हवा, रौशनी और जल तक की व्यवस्था नहीं है। यहां की सडकों पर प्रतिदिन लाखों वाहन गंदा धुआं निकालते हैं जो पर्यावरण में घुल जाता है। वृक्षों की कमी के कारण यह धुआँ लोगों के फेफड़े में पहुंचकर उन्हें रोगी बनाता है। नगरों में जल के स्रोत भी दूषित हो गए हैं। कानपुर की गंगा भी नाम मात्र की पवित्र रह गयी है। सारा प्रदूषित जल, रासायनिक पदार्थ और कचरा आदि इसमें बहा दिया जाता है। वाहनों और अन्य कारणों से होने वाला शोर हमें तनावग्रस्त बना रहा है। प्रदूषण रोकने का सर्वोत्तम उपाय है - जनसंख्या पर नियंत्रण। सरकार को शहरी सुविधाएं गांवों तक पहुंचाने का जिम्मा लेना चाहिए ताकि शहरों की ओर पलायन में कमी आये। प्रदूषण बढ़ाने वाले कारखाने, उनसे निकलने वाले रासायनिक पदार्थ और कचरे आदि का उचित प्रबंध किया जाना चाहिए। शोर रोकने के लिए कठोर नियम बनाने चाहिए और उन पर अमल भी करवाना चाहिए।
आज शहरों के बढ़ते विकास ने इसको शहरी सभ्यता का नाम दे दिया है। शहरी विकास के क्रम में गाँव से कस्बा, कसबे से उपनगर और नगर से महानगर विकसित हो गए। भारत के कुछ महानगरों की जनसंख्या एक करोड़ की संख्या पार कर चुकी है। इस कारण शहरों की दशा बहुत खराब हो गयी है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे महानगरों में हर प्रकार का प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। लाखों लोग झुग्गी-झोपड़ियों में जीवन निर्वाह कर रहे हैं जहां खुली हवा, रौशनी और जल तक की व्यवस्था नहीं है। यहां की सडकों पर प्रतिदिन लाखों वाहन गंदा धुआं निकालते हैं जो पर्यावरण में घुल जाता है। वृक्षों की कमी के कारण यह धुआँ लोगों के फेफड़े में पहुंचकर उन्हें रोगी बनाता है। नगरों में जल के स्रोत भी दूषित हो गए हैं। कानपुर की गंगा भी नाम मात्र की पवित्र रह गयी है। सारा प्रदूषित जल, रासायनिक पदार्थ और कचरा आदि इसमें बहा दिया जाता है। वाहनों और अन्य कारणों से होने वाला शोर हमें तनावग्रस्त बना रहा है। प्रदूषण रोकने का सर्वोत्तम उपाय है - जनसंख्या पर नियंत्रण। सरकार को शहरी सुविधाएं गांवों तक पहुंचाने का जिम्मा लेना चाहिए ताकि शहरों की ओर पलायन में कमी आये। प्रदूषण बढ़ाने वाले कारखाने, उनसे निकलने वाले रासायनिक पदार्थ और कचरे आदि का उचित प्रबंध किया जाना चाहिए। शोर रोकने के लिए कठोर नियम बनाने चाहिए और उन पर अमल भी करवाना चाहिए।
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आज शहरों के बढ़ते विकास ने इसको शहरी सभ्यता का नाम दे दिया है। शहरी विकास के क्रम में गाँव से कस्बा, कसबे से उपनगर और नगर से महानगर विकसित हो गए। भारत के कुछ महानगरों की जनसंख्या एक करोड़ की संख्या पार कर चुकी है। इस कारण शहरों की दशा बहुत खराब हो गयी है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे महानगरों में हर प्रकार का प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। लाखों लोग झुग्गी-झोपड़ियों में जीवन निर्वाह कर रहे हैं जहां खुली हवा, रौशनी और जल तक की व्यवस्था नहीं है। यहां की सडकों पर प्रतिदिन लाखों वाहन गंदा धुआं निकालते हैं जो पर्यावरण में घुल जाता है। वृक्षों की कमी के कारण यह धुआँ लोगों के फेफड़े में पहुंचकर उन्हें रोगी बनाता है। नगरों में जल के स्रोत भी दूषित हो गए हैं। कानपुर की गंगा भी नाम मात्र की पवित्र रह गयी है। सारा प्रदूषित जल, रासायनिक पदार्थ और कचरा आदि इसमें बहा दिया जाता है। वाहनों और अन्य कारणों से होने वाला शोर हमें तनावग्रस्त बना रहा है। प्रदूषण रोकने का सर्वोत्तम उपाय है - जनसंख्या पर नियंत्रण। सरकार को शहरी सुविधाएं गांवों तक पहुंचाने का जिम्मा लेना चाहिए ताकि शहरों की ओर पलायन में कमी आये। प्रदूषण बढ़ाने वाले कारखाने, उनसे निकलने वाले रासायनिक पदार्थ और कचरे आदि का उचित प्रबंध किया जाना चाहिए। शोर रोकने के लिए कठोर नियम बनाने चाहिए और उन पर अमल भी करवाना चाहिए।Answer: शहरों में भरने वाला प्रदूषण
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आज शहरों के बढ़ते विकास ने इसको शहरी सभ्यता का नाम दे दिया है। शहरी विकास के क्रम में गाँव से कस्बा, कसबे से उपनगर और नगर से महानगर विकसित हो गए। भारत के कुछ महानगरों की जनसंख्या एक करोड़ की संख्या पार कर चुकी है। इस कारण शहरों की दशा बहुत खराब हो गयी है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे महानगरों में हर प्रकार का प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। लाखों लोग झुग्गी-झोपड़ियों में जीवन निर्वाह कर रहे हैं जहां खुली हवा, रौशनी और जल तक की व्यवस्था नहीं है। यहां की सडकों पर प्रतिदिन लाखों वाहन गंदा धुआं निकालते हैं जो पर्यावरण में घुल जाता है। वृक्षों की कमी के कारण यह धुआँ लोगों के फेफड़े में पहुंचकर उन्हें रोगी बनाता है। नगरों में जल के स्रोत भी दूषित हो गए हैं। कानपुर की गंगा भी नाम मात्र की पवित्र रह गयी है। सारा प्रदूषित जल, रासायनिक पदार्थ और कचरा आदि इसमें बहा दिया जाता है। वाहनों और अन्य कारणों से होने वाला शोर हमें तनावग्रस्त बना रहा है। प्रदूषण रोकने का सर्वोत्तम उपाय है - जनसंख्या पर नियंत्रण। सरकार को शहरी सुविधाएं गांवों तक पहुंचाने का जिम्मा लेना चाहिए ताकि शहरों की ओर पलायन में कमी आये। प्रदूषण बढ़ाने वाले कारखाने, उनसे निकलने वाले रासायनिक पदार्थ और कचरे आदि का उचित प्रबंध किया जाना चाहिए। शोर रोकने के लिए कठोर नियम बनाने चाहिए और उन पर अमल भी करवाना चाहिए।