ऐतिहासिक पृष्ठभूमि – जन्माष्टमी का पावन पर्व योगीराज श्रीकृष्ण के जन्म देसी महीने की भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है । श्रीकृष्ण मथुरा राज्य के सामंत वासुदेव- देवकी की आठवीं संतान थे । एक आकाशवाणी सुनकर कि वासुदेव- देवकी के गर्भ से जन्म लेने वाला बालक ही अत्याचारी और नृशंस राजकुमार कंस की मृत्यु का कारण बनेगा, भयभीत कंस ने उन्हें काल- कोठरी में बंद कर दिया । वहां जन्म लेने वाली देवकी की सात संतानों को तो कंस ने मार दिया, लेकिन आठवीं संतान को अपने शुभचिंतकों की सहायता से वासुदेव ने अपने परम मित्र नंद के पास पहुंचा दिया । वहीं नंद, यशोदा की गोद में पला-बढ़ा एवं बाद में मथुरा पहुंच कर कंस का वध करके अपने माता-पिता एवं नाना उग्रसेन को कारागार से मुक्त करवाया । जन्माष्टमी का पवित्र त्योहार इन्हीं की पवित्र स्मृति में,इनके किए प्रतिष्ठित कार्यों आदि के प्रति श्रद्धांजलि समर्पित करने के लिए पूरे भारतवर्ष में हिंदू समाज में मनाया जाता है ।
त्योहार मनाने की विधि – सनातन धर्म को मानने वाले लोग इस दिन श्रद्धा एवं प्रेम से व्रत रखते हैं । घर में साफ-सफाई करके धूप-दीप से सजाते हैं । गांव में लोग कुछ दिन पहले से ही पकवान बनाने प्रारंभ कर देते हैं । मंदिरों को खूब सजाया जाता है । मंदिरों में सारा दिन भजन कीर्तन होता रहता है । भिन्न-भिन्न प्रकार की झांकियां दिखाई जाती हैं । अर्धरात्रि पर चंद्रमा के दर्शन करके सनातनी लोग अपना व्रत समाप्त करते हैं । दूध, फलाहार एवं मिष्ठान लेते हैं ।
जन-जीवन में महत्ता – अत्याचारी कंस से प्रजा की रक्षा करने वाले श्रीकृष्ण तपस्वी, मनस्वी, योगी, दार्शनिक, महाराजा, सेनापति एवं कूटनीतिज्ञ थे । उन्होंने पापियों का नाश करके धर्म की स्थापना की थी । इस महापुरुष के जन्मदिन का गौरव जन्माष्टमी को प्राप्त है । भारत में इस त्योहार का अत्यधिक महत्त्व है ।
झांकियों का प्रदर्शन – गांवों तथा नगरों में अनेक स्थानों पर झूलों एवं झांकियों का प्रदर्शन किया जाता है जिन्हें देखने मंदिरों में लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं । कई स्थानों पर बाजारों में भी झांकियां निकाली जाती हैं । स्कूलों में भी जन्माष्टमी का महत्त्व बच्चों को बताने के लिए कार्यक्रम किया जाता है । मंदिरों में गीता का अखंड पाठ किया जाता है । देवालयों की शोभा विशेषकर मथुरा एवं वृदांवन में देखने योग्य होती है । सांस्कृतिक दृष्टि से श्रीकृष्ण ने अपने श्रीमुख से गीता का प्रवचन दिया था, उसका पाठ किया करते हैं । इस प्रकार जन्माष्टमी का उत्सव बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है ।
नीचे एक निबंध जन्माष्टमी पर बिना नुक्ते के भी दिया गया है.
Answers & Comments
जन्माष्टमी
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि – जन्माष्टमी का पावन पर्व योगीराज श्रीकृष्ण के जन्म देसी महीने की भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है । श्रीकृष्ण मथुरा राज्य के सामंत वासुदेव- देवकी की आठवीं संतान थे । एक आकाशवाणी सुनकर कि वासुदेव- देवकी के गर्भ से जन्म लेने वाला बालक ही अत्याचारी और नृशंस राजकुमार कंस की मृत्यु का कारण बनेगा, भयभीत कंस ने उन्हें काल- कोठरी में बंद कर दिया । वहां जन्म लेने वाली देवकी की सात संतानों को तो कंस ने मार दिया, लेकिन आठवीं संतान को अपने शुभचिंतकों की सहायता से वासुदेव ने अपने परम मित्र नंद के पास पहुंचा दिया । वहीं नंद, यशोदा की गोद में पला-बढ़ा एवं बाद में मथुरा पहुंच कर कंस का वध करके अपने माता-पिता एवं नाना उग्रसेन को कारागार से मुक्त करवाया । जन्माष्टमी का पवित्र त्योहार इन्हीं की पवित्र स्मृति में,इनके किए प्रतिष्ठित कार्यों आदि के प्रति श्रद्धांजलि समर्पित करने के लिए पूरे भारतवर्ष में हिंदू समाज में मनाया जाता है ।
त्योहार मनाने की विधि – सनातन धर्म को मानने वाले लोग इस दिन श्रद्धा एवं प्रेम से व्रत रखते हैं । घर में साफ-सफाई करके धूप-दीप से सजाते हैं । गांव में लोग कुछ दिन पहले से ही पकवान बनाने प्रारंभ कर देते हैं । मंदिरों को खूब सजाया जाता है । मंदिरों में सारा दिन भजन कीर्तन होता रहता है । भिन्न-भिन्न प्रकार की झांकियां दिखाई जाती हैं । अर्धरात्रि पर चंद्रमा के दर्शन करके सनातनी लोग अपना व्रत समाप्त करते हैं । दूध, फलाहार एवं मिष्ठान लेते हैं ।
जन-जीवन में महत्ता – अत्याचारी कंस से प्रजा की रक्षा करने वाले श्रीकृष्ण तपस्वी, मनस्वी, योगी, दार्शनिक, महाराजा, सेनापति एवं कूटनीतिज्ञ थे । उन्होंने पापियों का नाश करके धर्म की स्थापना की थी । इस महापुरुष के जन्मदिन का गौरव जन्माष्टमी को प्राप्त है । भारत में इस त्योहार का अत्यधिक महत्त्व है ।
झांकियों का प्रदर्शन – गांवों तथा नगरों में अनेक स्थानों पर झूलों एवं झांकियों का प्रदर्शन किया जाता है जिन्हें देखने मंदिरों में लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं । कई स्थानों पर बाजारों में भी झांकियां निकाली जाती हैं । स्कूलों में भी जन्माष्टमी का महत्त्व बच्चों को बताने के लिए कार्यक्रम किया जाता है । मंदिरों में गीता का अखंड पाठ किया जाता है । देवालयों की शोभा विशेषकर मथुरा एवं वृदांवन में देखने योग्य होती है । सांस्कृतिक दृष्टि से श्रीकृष्ण ने अपने श्रीमुख से गीता का प्रवचन दिया था, उसका पाठ किया करते हैं । इस प्रकार जन्माष्टमी का उत्सव बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है ।
नीचे एक निबंध जन्माष्टमी पर बिना नुक्ते के भी दिया गया है.