APATHIT GADYAMSH सुखी, सफल और उत्तम जीवन जीने के लिए किए गए आचरण और प्रयत्नों का नाम ही धर्म है। देश, काल और सामाजिक मूल्यों की दृष्टि से संसार में भारी विविधता है, अतएव अपने-अपने ढंग से जीवन को पूर्णता की ओर ले जाने वाले विविध धर्मों के बीच भी ऊपर से विविधता दिखाई देती है। आदमी का स्वभाव है कि वह अपने ही विचारों और जीने के तौरतरीकों को तथा अपनी भाषा और खानपान को सर्वश्रेष्ठ मानता है तथा चाहता है कि लोग उसी का अनुसरण और अनुकरण करें, अतएव दूसरों से अपने धर्म को श्रेष्ठतर समझते हुए वह चाहता है कि सभी लोग उसे अपनाएँ। इसके लिए वह ज़ोरज़बर्दस्ती को भी बुरा नहीं समझता। धर्म के नाम पर होने वाले जातिगत विद्वेष, मारकाट और हिंसा के पीछे मनुष्य की यही स्वार्थ-भावना काम करती है। सोच कर देखिए कि आदमी का यह दृष्टिकोण कितना सीमित, स्वार्थपूर्ण और गलत है। सभी धर्म अपनी-अपनी भौगोलिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक आवश्यकताओं के आधार पर पैदा होते, पनपते और बढ़ते हैं, अतएव उनका बाह्य स्वरूप भिन्न-भिन्न होना आवश्यक और स्वाभाविक है, पर सबके भीतर मनुष्य की कल्याण-कामना है, मानव-प्रेम है। यह प्रेम यदि सच्चा है, तो यह बाँधता और सिकोड़ता नहीं, बल्कि हमारे हृदय और दृष्टिकोण का विस्तार करता अपठित गद्यांश है, वह हमें दूसरे लोगों के साथ नहीं, समस्त जीवन-जगत के साथ स्पष्ट है कि ऊपर से भिन्न दिखाई देने वाले सभी धर्म अपने मूल में मानव-कल्याण की एक ही मूलधारा को लेकर चले और चल रहे हैं। हम सभी इस सच्चाई को जानकर भी जब धार्मिक विदवेष की आँधी में बहते हैं, तो कितने दुर्भाग्य की बात है! उस समय हमें लगता है कि चिंतन और विकास के इस दौर में आ पहुँचने पर भी मनुष्य को उस जंगली-हिंसक अवस्था में लौटने में कुछ भी समय नहीं लगता; अतएव उसे निरंतर यह याद दिलाना होगा कि धर्म मानव-संबंधों को तोड़ता नहीं, जोड़ता है इसकी सार्थकता प्रेम में ही है। प्रश्नः (क) गदयांश के आधार पर बताइए कि धर्म क्या है और इसकी मुख्य विशेषता क्या है? प्रश्नः (ख) विविध धर्मों के बीच विविध प्रकार की मान्यताओं के क्या कारण हैं? इन विविधताओं के बावजूद मनुष्य क्यों चाहता है कि लोग उसी की धार्मिक मान्यताओं को अपनाएँ? । प्रश्नः (ग) अपनी धार्मिक मान्यताएँ दूसरों पर थोपना क्यों हितकर नहीं होता? प्रश्नः (घ) धर्मों के बाह्य स्वरूप में भिन्नता होना क्यों स्वाभाविक है? धर्म का मूल लक्ष्य क्या होना चाहिए? प्रश्नः (ङ) गद्यांश के आधार पर बताइए कि धर्म की मूल भावना क्या है? वह अपनी मूल भावना को कैसे बनाए हुए हैं?
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Answer:
Nice question pahala answer
Explanation:
सुखी सफल जी और उत्तम जीवन जीने के लिए किए गया चारण और प्रत्याशियों का नाम ही धर्म है 2 answer
देश काल और सामाजिक मूल्यों की दृष्टि से संसार से भरी भविता रहे थे अपने अपने ढंग से जीवन को पूर्णता की ओर ले जाने वाले विविध धर्मों के बीच भी ऊपर से विविधता दिखाई देती है आदमी का स्वभाव है कि वह अपने ही विचारों और जीने के तरीकों का तथा अपनी भाषा और खानपान को श्रेष्ठ बनाता है तथा चाहता है कि लोग उसी का अनुसरण और हम कारण करें तथा दूसरों से अपने धर्म को श्रेष्ठ समझते हुए वह चाहता है कि कि सभी लोग उसे अपनाएं इसके लिए वह जोर-जबर्दस्ती को भी बुरा नहीं समझता 3 answer धर्म के नाम पर होने वाले जगह गीत विदेशी मार्केट और सिंगर के पीछे मनुष्य की यह स्वार्थ भावना काम करती है सोच कर देखिए गलत है 4
Answer:
same thing i want
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