Answer:
नाद हुआ वह ओ३म् था। अब भी जब और कोई ध्वनि नहीं होती
तो यही ओ३म् की ध्वनि, न केवल बाह्य श्रोत्र ही सुनते हैं अपितु
अन्तःकरण भी ओ३म् का ही नाद सुनता है।
सारे शास्त्रों ने ओ३म् ही को परमात्मा का निज नाम दर्शाया है
और तो और तान्त्रिक मत्र भी तब तक पूर्ण नहीं होते, जब तक उनके
आदि में ओ३म् न बोला जाए।
ओ३म् ही भवसागर से पार लँघानेवाला है। मानव जीवन का
आदि-अन्त यही है। भगवान् का नाम हमारी परम्परा में जन्म लेते ही
बच्चे को मन्त्र के रूप में दे दिया जाता है।
श्री गुरु नानकदेव जी महाराज ने भी कहा है, "एक ओंकार सत्
नाम कर्ता पुरख ।” ओ३म् और ओंकार दोनों का तात्पर्य एक ही है।
10 / नैतिक शिक्षा (कक्षा-8)
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नाद हुआ वह ओ३म् था। अब भी जब और कोई ध्वनि नहीं होती
तो यही ओ३म् की ध्वनि, न केवल बाह्य श्रोत्र ही सुनते हैं अपितु
अन्तःकरण भी ओ३म् का ही नाद सुनता है।
सारे शास्त्रों ने ओ३म् ही को परमात्मा का निज नाम दर्शाया है
और तो और तान्त्रिक मत्र भी तब तक पूर्ण नहीं होते, जब तक उनके
आदि में ओ३म् न बोला जाए।
ओ३म् ही भवसागर से पार लँघानेवाला है। मानव जीवन का
आदि-अन्त यही है। भगवान् का नाम हमारी परम्परा में जन्म लेते ही
बच्चे को मन्त्र के रूप में दे दिया जाता है।
श्री गुरु नानकदेव जी महाराज ने भी कहा है, "एक ओंकार सत्
नाम कर्ता पुरख ।” ओ३म् और ओंकार दोनों का तात्पर्य एक ही है।
10 / नैतिक शिक्षा (कक्षा-8)