बाल गोविंद भगत सन्यासी ना होते हुए भी सन्यासी के लेखक ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि बाल गोविंद भगत कोई जाट जुट नहीं रखते थे, उनका परिवार भी था, फिर भी वे साधूओं की हर परिभाषा पर खड़े उत्तरते थे, वे कबीर को अपना साहब मानते थे और अनके खेत में जो कुछ उपजता था वे ले जाकर कबीर मठ में चढ़ा देते और प्रसाद रुप में जो मिलता उसी से घर चलाते , किसी दूसरे के खेत में शौच नहीं करते थे
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बाल गोविंद भगत सन्यासी ना होते हुए भी सन्यासी के लेखक ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि बाल गोविंद भगत कोई जाट जुट नहीं रखते थे, उनका परिवार भी था, फिर भी वे साधूओं की हर परिभाषा पर खड़े उत्तरते थे, वे कबीर को अपना साहब मानते थे और अनके खेत में जो कुछ उपजता था वे ले जाकर कबीर मठ में चढ़ा देते और प्रसाद रुप में जो मिलता उसी से घर चलाते , किसी दूसरे के खेत में शौच नहीं करते थे
Answer:
kyunki vah Sanyasi ke veshbhusha mein rahte the unke andar Sanyasi ke pratyek ghoda the