गांधी जी ने असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए अपने देशवासियों से आह्वान किया था, इस समय लाल बहादुर शास्त्री केवल सोलह वर्ष के थे। उन्होंने महात्मा गांधी के इस आह्वान पर अपनी पढ़ाई छोड़ देने का निर्णय कर लिया था। उनके इस निर्णय ने उनकी मां की उम्मीदें तोड़ दीं। उनके परिवार ने उनके इस निर्णय को गलत बताते हुए उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वे इसमें असफल रहे। लाल बहादुर ने अपना मन बना लिया था। उनके सभी करीबी लोगों को यह पता था कि एक बार मन बना लेने के बाद वे अपना निर्णय कभी नहीं बदलेंगें क्योंकि बाहर से विनम्र दिखने वाले लाल बहादुर अन्दर से चट्टान की तरह दृढ़ हैं।
लाल बहादुर शास्त्री ब्रिटिश शासन की अवज्ञा में स्थापित किये गए कई राष्ट्रीय संस्थानों में से एक वाराणसी के काशी विद्या पीठ में शामिल हुए। यहाँ वे महान विद्वानों एवं देश के राष्ट्रवादियों के प्रभाव में आए। विद्या पीठ द्वारा उन्हें प्रदत्त स्नातक की डिग्री का नाम ‘शास्त्री’ था लेकिन लोगों के दिमाग में यह उनके नाम के एक भाग के रूप में बस गया।
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गांधी जी ने असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए अपने देशवासियों से आह्वान किया था, इस समय लाल बहादुर शास्त्री केवल सोलह वर्ष के थे। उन्होंने महात्मा गांधी के इस आह्वान पर अपनी पढ़ाई छोड़ देने का निर्णय कर लिया था। उनके इस निर्णय ने उनकी मां की उम्मीदें तोड़ दीं। उनके परिवार ने उनके इस निर्णय को गलत बताते हुए उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वे इसमें असफल रहे। लाल बहादुर ने अपना मन बना लिया था। उनके सभी करीबी लोगों को यह पता था कि एक बार मन बना लेने के बाद वे अपना निर्णय कभी नहीं बदलेंगें क्योंकि बाहर से विनम्र दिखने वाले लाल बहादुर अन्दर से चट्टान की तरह दृढ़ हैं।
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