➽आशय- सुखिया के पिता को मंदिर की पवित्रता नष्ट करने और देवी को अपमानित करने के जुर्म में सात दिन का कारावास मिला। इससे उसे बहुत दुख हुआ। अपनी मरणासन्न पुत्री सुखिया को यादकर वह अपना दुख आँसुओं के माध्यम से प्रकट कर रहा था। सात दिनों तक रोते रहने से उसकी व्यथा कम न हुई।
सुखिया के पिता को मंदिर के प्रसाद का एक फूल लाना था, अतः वह निराशा में डूब गया, क्योंकि वह सामाजिक स्थिति को जानता था। मंदिर में जैसे ही उसने पुजारी से प्रसाद लिया तभी कुछ लोगों ने उसे पहचान लिया और उन्होंने उसे खूब मारा-पीटा। मंदिर में पुजारी से मिला प्रसाद नीचे बिखर गया। न्यायालय से दण्ड दिया गया।
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➽आशय- सुखिया के पिता को मंदिर की पवित्रता नष्ट करने और देवी को अपमानित करने के जुर्म में सात दिन का कारावास मिला। इससे उसे बहुत दुख हुआ। अपनी मरणासन्न पुत्री सुखिया को यादकर वह अपना दुख आँसुओं के माध्यम से प्रकट कर रहा था। सात दिनों तक रोते रहने से उसकी व्यथा कम न हुई।
@itzßparkly♥️
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सुखिया के पिता को मंदिर के प्रसाद का एक फूल लाना था, अतः वह निराशा में डूब गया, क्योंकि वह सामाजिक स्थिति को जानता था। मंदिर में जैसे ही उसने पुजारी से प्रसाद लिया तभी कुछ लोगों ने उसे पहचान लिया और उन्होंने उसे खूब मारा-पीटा। मंदिर में पुजारी से मिला प्रसाद नीचे बिखर गया। न्यायालय से दण्ड दिया गया।