आज देश के प्रत्येक शहर में वृद्धाश्रमों की स्थापना हो चुकी है ,परन्तु उनकी कुल क्षमता का सदुपयोग न हो पाना यह दर्शाता है की हमारा समाज वृद्धाश्रम को प्रौढावस्था के विकल्प के रूप में स्वीकार नहीं कर पा रहा है. क्योंकि हमारा समाज आज भी संस्कारगत मूल्यों पर आधारित है.
आज देश के प्रत्येक शहर में वृद्धाश्रमों की स्थापना हो चुकी है ,परन्तु उनकी कुल क्षमता का सदुपयोग न हो पाना यह दर्शाता है की हमारा समाज वृद्धाश्रम को प्रौढावस्था के विकल्प के रूप में स्वीकार नहीं कर पा रहा है. क्योंकि हमारा समाज आज भी संस्कारगत मूल्यों पर आधारित है|
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आज देश के प्रत्येक शहर में वृद्धाश्रमों की स्थापना हो चुकी है ,परन्तु उनकी कुल क्षमता का सदुपयोग न हो पाना यह दर्शाता है की हमारा समाज वृद्धाश्रम को प्रौढावस्था के विकल्प के रूप में स्वीकार नहीं कर पा रहा है. क्योंकि हमारा समाज आज भी संस्कारगत मूल्यों पर आधारित है.
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आज देश के प्रत्येक शहर में वृद्धाश्रमों की स्थापना हो चुकी है ,परन्तु उनकी कुल क्षमता का सदुपयोग न हो पाना यह दर्शाता है की हमारा समाज वृद्धाश्रम को प्रौढावस्था के विकल्प के रूप में स्वीकार नहीं कर पा रहा है. क्योंकि हमारा समाज आज भी संस्कारगत मूल्यों पर आधारित है|
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