आज बुजुर्गों की समस्या अकल्पनीय है। वृद्धावस्था अभिशाप होती जा रही है। उनका जीवनयापन बहुत कठिन होता जा रहा है। कोई चलने में असमर्थ है तो कोई अपाहिज सदृश बिस्तर को ही अपनी नियति मानकर जीवन निर्वाह कर रहा है। यदि वे उच्चवर्गीय हैं तो उनकी संतान ने नर्स, अटेंडेंट या बहुत सारे पैसों की व्यवस्था कर दी है, ताकि उन लोगों का जीवन भौतिक सुख-सुविधा से परिपूर्ण हो। वृद्धाश्रमों में भीड़ बढ़ती जा रही है। अगर उनके दुखड़े सुनने बैठ जाओ तो पता चलता है कि संतानें उनसे उनकी जमीनें, मकान, दुकानें अपने नाम लिखाकर उन्हें वहां छोड़ गई हैं। बुजुर्गों की स्थिति पर चिंतन करते हुए यह बातें समाजसेवियों और चिंतनशील व्यक्तियों ने कहीं।
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आज बुजुर्गों की समस्या अकल्पनीय है। वृद्धावस्था अभिशाप होती जा रही है। उनका जीवनयापन बहुत कठिन होता जा रहा है। कोई चलने में असमर्थ है तो कोई अपाहिज सदृश बिस्तर को ही अपनी नियति मानकर जीवन निर्वाह कर रहा है। यदि वे उच्चवर्गीय हैं तो उनकी संतान ने नर्स, अटेंडेंट या बहुत सारे पैसों की व्यवस्था कर दी है, ताकि उन लोगों का जीवन भौतिक सुख-सुविधा से परिपूर्ण हो। वृद्धाश्रमों में भीड़ बढ़ती जा रही है। अगर उनके दुखड़े सुनने बैठ जाओ तो पता चलता है कि संतानें उनसे उनकी जमीनें, मकान, दुकानें अपने नाम लिखाकर उन्हें वहां छोड़ गई हैं। बुजुर्गों की स्थिति पर चिंतन करते हुए यह बातें समाजसेवियों और चिंतनशील व्यक्तियों ने कहीं।