एक बार की बात है, घने अमेज़ॅन वर्षावन में एक शेर रहता था। जब वह अपने बड़े सिर को अपने पंजों पर टिकाकर सो रहा था, एक छोटा सा चूहा अप्रत्याशित रूप से पार हो गया और जल्दबाजी में शेर की नाक के पार भाग गया। इससे शेर की नींद खुल गई और उसने गुस्से में अपना विशाल पंजा छोटे चूहे पर रख दिया ताकि वह उसे मार सके।
बेचारे चूहे ने शेर से इस बार उसे बख्शने की भीख माँगी और वह उसे किसी और दिन वापस कर देगी। यह सुनकर शेर हैरान रह गया और सोचने लगा कि इतना छोटा जीव कभी उसकी मदद कैसे कर सकता है। लेकिन वह अच्छे मूड में था और उसने अपनी उदारता में आखिरकार चूहे को जाने दिया।
कुछ दिनों बाद, एक शिकारी ने शेर के लिए एक जाल बिछाया, जबकि बड़ा जानवर जंगल में शिकार के लिए पीछा कर रहा था। शिकारी के जाल में फंसकर शेर को अपने आप को छुड़ाना मुश्किल हो गया और वह गुस्से में जोर-जोर से दहाड़ने लगा।
जैसे ही चूहा गुजर रहा था, उसने दहाड़ सुनी और पाया कि शेर खुद को शिकारी के जाल से मुक्त करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है। छोटा जीव जल्दी से शेर के जाल की ओर भागा जिसने उसे बांध दिया और अपने नुकीले दांतों से जाल को तब तक कुतर दिया जब तक कि जाल फट न जाए। धीरे-धीरे उसने जाल में एक बड़ा छेद कर दिया और जल्द ही शेर खुद को शिकारी के जाल से मुक्त करने में सक्षम हो गया।
शेर ने छोटे चूहे को उसकी मदद के लिए धन्यवाद दिया और चूहे ने उसे याद दिलाया कि उसने शेर को पहले उसकी जान बख्शने के लिए चुका दिया था। इसके बाद, शेर और चूहा अच्छे दोस्त बन गए और जंगल में खुशी-खुशी रहने लगे।
कहानी की शिक्षा:
प्रेम और दया कभी व्यर्थ नहीं जाती। आप दया से पूरा कर सकते हैं, जिसे आप बल से नहीं कर सकते।
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daksha8773
लता स्कूल से आकर उछलती हुई दादाजी के पास गई। दादाजी ने पूछ। लिया-“लता बेटे, आज तुम बहुत खुश दिखाई दे रही हो। क्या बात है?” लता बोली-“दादाजी, मैं पास हो गई। अपनी क्लास में मेरा पहला नंबर है। लेकिन दादाजी हमारी क्लास में दो बच्चे फेल हो गए। वे रोने लगे तो मैडम ने उनसे कहा-‘अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत’। दादाजी, मैडम ने ऐसा क्यों कहा?”दादाजी ने कहा-“बेटा, जब कोई व्यक्ति समय पर अपना काम नहीं करता और उसे नुकसान हो जाता है तब ऐसा ही कहा जाता है। इसे ठीक से समझाने के लिए एक कहानी सुनाता हूँ।” कहते हुए दादाजी ने अमर को भी बुला लिया और बोले-एक किसान था। वह बहुत मेहनती था। लेकिन उसका बेटा बहत आलसी था। किसान ने उसे अपने खेतों में खड़ी फसल की रखवाली का काम सौंप रखा था। लेकिन वह आलसी खेत में जाकर दिन-भर सोता रहता और सैकड़ों चिड़ियाँ उसके खेत में खड़ी फसल के दानों को खाती रहतीं। धीरे-धीरे दिन बीत गए और कुछ ही दिनों में बेचारे किसान की सारी फसल चिड़ियाँ चट कर गईं। जब किसान को इस बात का पता चला तो उसने अपना माथा पीट लिया। उसने अपने आलसी बेटे को बहुत डॉटा। किसान दुखी होकर रोते हुए बोला-“मुझे मेरे आलसी बेटे ने बरबाद कर दिया। काम का न काज का, दुश्मन अनाज का!’ यह देखकर उसका बेटा भी जोर-जोर से रोने लगा। वह रोते-रोते कह रहा था-‘मेरी वजह से सारी फसल चौपट हो गई। सारी मेहनत बेकार हो गई। पिताजी, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। मुझे माफ कर दीजिए। इस तरह दोनों बाप-बेटे अपने उजड़े हुए खेत को देख-देखकर रोने-बिलखने लगे।
“तभी राम नाम का जाप करते हुए एक साधु उधर आए। साधु ने किसान और उसके बेटे को रोते-बिलखते देखा तो रुक गए। उन्होंने किसान से रोने-धोने का कारण पूछा। किसान ने रोते हुए अपने आलसी बेटे के कारण नष्ट हो गई फसल के बारे में सारी बात बता दी। तब किसान का बेटा साधु के पैरों में गिर पड़ा और माफी माँगने लगा-‘मुझसे गलती हो गई बाबा! मेरी वजह से सारी फसल बरबाद हो गई। साधु ने किसान के बेटे को उठाया और बोले-‘बेटा, अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत! चलो उठो, भविष्य में अपना काम समय पर करना। याद रखो, मेहनत का फल हमेशा मीठा होता है। ऐसा कहते हुए साधु ने किसान के बेटे के सिर पर हाथ फेरा। ” दादाजी ने कहानी समाप्त की।
कहानी सुनकर अमर बोला-“दादाजी, इसका मतलब है कि हमें अपना काम समय पर कर लेना चाहिए ताकि बाद में हमें पछताना न पड़े।” दादाजी बोले-“हाँ बेटा, इससे हमें यह सीख मिलती है कि आज का काम कल पर कभी नहीं छोड़ना चाहिए। किसी ने ठीक ही कहा है—
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एक बार की बात है, घने अमेज़ॅन वर्षावन में एक शेर रहता था। जब वह अपने बड़े सिर को अपने पंजों पर टिकाकर सो रहा था, एक छोटा सा चूहा अप्रत्याशित रूप से पार हो गया और जल्दबाजी में शेर की नाक के पार भाग गया। इससे शेर की नींद खुल गई और उसने गुस्से में अपना विशाल पंजा छोटे चूहे पर रख दिया ताकि वह उसे मार सके।
बेचारे चूहे ने शेर से इस बार उसे बख्शने की भीख माँगी और वह उसे किसी और दिन वापस कर देगी। यह सुनकर शेर हैरान रह गया और सोचने लगा कि इतना छोटा जीव कभी उसकी मदद कैसे कर सकता है। लेकिन वह अच्छे मूड में था और उसने अपनी उदारता में आखिरकार चूहे को जाने दिया।
कुछ दिनों बाद, एक शिकारी ने शेर के लिए एक जाल बिछाया, जबकि बड़ा जानवर जंगल में शिकार के लिए पीछा कर रहा था। शिकारी के जाल में फंसकर शेर को अपने आप को छुड़ाना मुश्किल हो गया और वह गुस्से में जोर-जोर से दहाड़ने लगा।
जैसे ही चूहा गुजर रहा था, उसने दहाड़ सुनी और पाया कि शेर खुद को शिकारी के जाल से मुक्त करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है। छोटा जीव जल्दी से शेर के जाल की ओर भागा जिसने उसे बांध दिया और अपने नुकीले दांतों से जाल को तब तक कुतर दिया जब तक कि जाल फट न जाए। धीरे-धीरे उसने जाल में एक बड़ा छेद कर दिया और जल्द ही शेर खुद को शिकारी के जाल से मुक्त करने में सक्षम हो गया।
शेर ने छोटे चूहे को उसकी मदद के लिए धन्यवाद दिया और चूहे ने उसे याद दिलाया कि उसने शेर को पहले उसकी जान बख्शने के लिए चुका दिया था। इसके बाद, शेर और चूहा अच्छे दोस्त बन गए और जंगल में खुशी-खुशी रहने लगे।
कहानी की शिक्षा:
प्रेम और दया कभी व्यर्थ नहीं जाती। आप दया से पूरा कर सकते हैं, जिसे आप बल से नहीं कर सकते।
“तभी राम नाम का जाप करते हुए एक साधु उधर आए। साधु ने किसान और उसके बेटे को रोते-बिलखते देखा तो रुक गए। उन्होंने किसान से रोने-धोने का कारण पूछा। किसान ने रोते हुए अपने आलसी बेटे के कारण नष्ट हो गई फसल के बारे में सारी बात बता दी। तब किसान का बेटा साधु के पैरों में गिर पड़ा और माफी माँगने लगा-‘मुझसे गलती हो गई बाबा! मेरी वजह से सारी फसल बरबाद हो गई। साधु ने किसान के बेटे को उठाया और बोले-‘बेटा, अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत! चलो उठो, भविष्य में अपना काम समय पर करना। याद रखो, मेहनत का फल हमेशा मीठा होता है। ऐसा कहते हुए साधु ने किसान के बेटे के सिर पर हाथ फेरा। ” दादाजी ने कहानी समाप्त की।
कहानी सुनकर अमर बोला-“दादाजी, इसका मतलब है कि हमें अपना काम समय पर कर लेना चाहिए ताकि बाद में हमें पछताना न पड़े।” दादाजी बोले-“हाँ बेटा, इससे हमें यह सीख मिलती है कि आज का काम कल पर कभी नहीं छोड़ना चाहिए। किसी ने ठीक ही कहा है—