27 मई को महान जवाहरलाल नेहरू जी का निधन हुआ था। जिस कारन उनके शोक में शहीद दिवस मनाया जाता है।
केन्द्रीय पुलिस बल के जवान 1959 में चीनी सेना द्वारा लद्दाख में आक्रमण में अमर हो गए जिसके कारण भारतीय पोलिस द्वारा 21 अक्टूबर को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।
वहीं दूसरी और ओडिशा में लाला लाजपत राय के महान कार्यों को याद करते हुए 17 नवम्बर को शहीद दिवस सम्मान से मनाया जाता है।
19 नवम्बर को झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्म दिवस होता है। उनके ब्रिटिश शासन के खिलाफ 1857 के विद्रोह में योगदान को कोई भुला नहीं सकता है। इस कारण इस दिन को भी शहीद दिवस के रूप में भारत में मनाया जाता है।
शहीद दिवस का इतिहास बहुत पुराना और लंबा है। भारत की पवित्र भूमि पर एक नहीं बल्कि कई बार राष्ट्र प्रेमियों ने आगे आकर भारत माता का कर्ज चुकाया है और देश के लिए शहीद कहलाए हैं।
इतिहास में कई ऐसी अप्रिय घटनाएं घटी हैं, जब किसी ना किसी कारणवश देश से उनके महान मार्गदर्शक दूर चले गए लेकिन, उन्होंने देश के लोगों को राष्ट्र सुरक्षा का बहुत बड़ा दायित्व सौंपा है।
देश के लिए कुर्बान होने वाले शहीदों की सूची बहुत लंबी है। 23 मार्च का शहीद दिवस बहुत मुख्य दिन है। जब भारत माता के वीर पुत्र भगत सिंह, राजगुरु सुखदेव को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा फांसी दे दी गई थी।
भारत माता के इन सपूतों की गाथा बेहद गौरवशाली रही है। 23 मार्च 1931 वह समय था, जब अंग्रेजों ने कायरता पूर्वक अमर शहीदों को फांसी की सजा सुनाई थी।
अपने ही देश में अंग्रेजों का जुल्म सहते हुए भारतीयों की दशा देखकर लाखों क्रांतिकारियों के दिल में बदले की आग जल रही थी। अंग्रेजों के शोषण की नीति से पूरा देश बड़ी दयनीय स्थिति में था।
उस समय जब अंग्रेजों के सामने किसी की बोलने की हिम्मत नहीं होती थी, तब भारत माता के शेरों ने लाहौर के सेंट्रल असेंबली में धमाका किया।
यह केवल एक चेतावनी थी, जिसमें किसी को भी चोट नहीं पहुंची थी। इस घटना के बाद भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु और उनके अन्य साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया।
इन क्रांतिकारियों के गिरफ्तारी के कारण देश में कई जगह पर प्रदर्शन किए गए, लेकिन उससे कोई बड़ा बदलाव नहीं आया। उस समय नरम दल के सबसे बड़े नेता महात्मा गांधी थे, जिन्हें भगत सिंह और उनके साथियों के आजादी प्राप्त करने के इस रास्ते पर बेहद नाराजगी थी।
मार्ग भले ही अलग-अलग थे, लेकिन सभी का लक्ष्य केवल एक ही था, आजादी। लोगों को यह शक हो गया था, कि अंग्रेज कोई कायरता पूर्वक हरकत जरूर करेंगे, और हुआ भी वही जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को 24 मार्च को फांसी दी जाने वाली थी।
लेकिन उसके 1 दिन पहले ही 23 मार्च 1931 के करीब शाम 7:00 बचकर 33 मिनट पर इन क्रांतिकारियों को फांसी पर चढ़ा दिया गया। इस घटना से पूरा देश आहत था और क्रोधित भी। आज सभी भारतवासी इन तीनों कर्मठ अमर क्रांतिकारियों की याद में शहीद दिवस मनाता है।
if you have any doubt in computer subject follow me.
Answers & Comments
Explanation:
इस तरह कि हर तरफ सिर्फ उनकी ही खुश्बू है...
सिर्फ एक ही आग थी उनके सीने में कि...
जिस वतन की मिट्टी में जन्म लिया है
उसी मिट्टी में खुद को मिला देना है...
कुछ भी हो अपने वतन को अंग्रेजो से बचाना है
खुद के लिये जीने को कई जन्म मिलेगें..
Explanation:
27 मई को महान जवाहरलाल नेहरू जी का निधन हुआ था। जिस कारन उनके शोक में शहीद दिवस मनाया जाता है।
केन्द्रीय पुलिस बल के जवान 1959 में चीनी सेना द्वारा लद्दाख में आक्रमण में अमर हो गए जिसके कारण भारतीय पोलिस द्वारा 21 अक्टूबर को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।
वहीं दूसरी और ओडिशा में लाला लाजपत राय के महान कार्यों को याद करते हुए 17 नवम्बर को शहीद दिवस सम्मान से मनाया जाता है।
19 नवम्बर को झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्म दिवस होता है। उनके ब्रिटिश शासन के खिलाफ 1857 के विद्रोह में योगदान को कोई भुला नहीं सकता है। इस कारण इस दिन को भी शहीद दिवस के रूप में भारत में मनाया जाता है।
शहीद दिवस का इतिहास बहुत पुराना और लंबा है। भारत की पवित्र भूमि पर एक नहीं बल्कि कई बार राष्ट्र प्रेमियों ने आगे आकर भारत माता का कर्ज चुकाया है और देश के लिए शहीद कहलाए हैं।
इतिहास में कई ऐसी अप्रिय घटनाएं घटी हैं, जब किसी ना किसी कारणवश देश से उनके महान मार्गदर्शक दूर चले गए लेकिन, उन्होंने देश के लोगों को राष्ट्र सुरक्षा का बहुत बड़ा दायित्व सौंपा है।
देश के लिए कुर्बान होने वाले शहीदों की सूची बहुत लंबी है। 23 मार्च का शहीद दिवस बहुत मुख्य दिन है। जब भारत माता के वीर पुत्र भगत सिंह, राजगुरु सुखदेव को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा फांसी दे दी गई थी।
भारत माता के इन सपूतों की गाथा बेहद गौरवशाली रही है। 23 मार्च 1931 वह समय था, जब अंग्रेजों ने कायरता पूर्वक अमर शहीदों को फांसी की सजा सुनाई थी।
अपने ही देश में अंग्रेजों का जुल्म सहते हुए भारतीयों की दशा देखकर लाखों क्रांतिकारियों के दिल में बदले की आग जल रही थी। अंग्रेजों के शोषण की नीति से पूरा देश बड़ी दयनीय स्थिति में था।
उस समय जब अंग्रेजों के सामने किसी की बोलने की हिम्मत नहीं होती थी, तब भारत माता के शेरों ने लाहौर के सेंट्रल असेंबली में धमाका किया।
यह केवल एक चेतावनी थी, जिसमें किसी को भी चोट नहीं पहुंची थी। इस घटना के बाद भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु और उनके अन्य साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया।
इन क्रांतिकारियों के गिरफ्तारी के कारण देश में कई जगह पर प्रदर्शन किए गए, लेकिन उससे कोई बड़ा बदलाव नहीं आया। उस समय नरम दल के सबसे बड़े नेता महात्मा गांधी थे, जिन्हें भगत सिंह और उनके साथियों के आजादी प्राप्त करने के इस रास्ते पर बेहद नाराजगी थी।
मार्ग भले ही अलग-अलग थे, लेकिन सभी का लक्ष्य केवल एक ही था, आजादी। लोगों को यह शक हो गया था, कि अंग्रेज कोई कायरता पूर्वक हरकत जरूर करेंगे, और हुआ भी वही जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को 24 मार्च को फांसी दी जाने वाली थी।
लेकिन उसके 1 दिन पहले ही 23 मार्च 1931 के करीब शाम 7:00 बचकर 33 मिनट पर इन क्रांतिकारियों को फांसी पर चढ़ा दिया गया। इस घटना से पूरा देश आहत था और क्रोधित भी। आज सभी भारतवासी इन तीनों कर्मठ अमर क्रांतिकारियों की याद में शहीद दिवस मनाता है।
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