मन-काँचे नाचै वृथा, साँचै राँचै रामु॥ माला लेकर किसी मंत्र-विशेष का जाप करने से तथा मस्तक एवं शरीर के अन्य अंगों पर तिलक-छापा लगाने से तो एक भी काम पूरा नहीं हो सकता, क्योंकि ये सब तो आडंबर मात्र हैं। कच्चे मन वाला तो व्यर्थ में ही नाचता रहता है, उससे राम प्रसन्न नहीं होते।
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मन-काँचे नाचै वृथा, साँचै राँचै रामु॥ माला लेकर किसी मंत्र-विशेष का जाप करने से तथा मस्तक एवं शरीर के अन्य अंगों पर तिलक-छापा लगाने से तो एक भी काम पूरा नहीं हो सकता, क्योंकि ये सब तो आडंबर मात्र हैं। कच्चे मन वाला तो व्यर्थ में ही नाचता रहता है, उससे राम प्रसन्न नहीं होते।