भारत में जनसंचार माध्यमों का विकास : भारत में आज जनसंचार के आधुनिक माध्यम जिस रूप में मौजूद हैं, उसकी प्रेरणा भले ही पश्चिमी जनसंचार माध्यम रहे हों, लेकिन हमारे देश में भी जनसंचार माध्यमों का इतिहास कम पुराना नहीं हैं। बड़ी सहजता के साथ इसके बीज पौराणिक काल के मिथकीय पात्रों में खोजे जा सकते हैं।
भारत में आज जनसंचार के आधुनिक माध्यम जिस रूप में मौजूद हैं, उसकी प्रेरणा भले ही पश्चिमी जनसंचार माध्यम रहे हों, लेकिन हमारे देश में भी जनसंचार माध्यमों का इतिहास कम पुराना नहीं हैं। बड़ी सहजता के साथ इसके बीज पौराणिक काल के मिथकीय पात्रों में खोजे जा सकते हैं। देवर्षि नारद को भारत का पहला समाचार वाचक माना जाता है जो वीणा की मधुर झंकार के साथ धरती और देवलोक के बीच संवाद-सेतु थे।
लेकिन भारतीय संचार परंपरा की खासियत यह भी रही है कि राजदरबारों के समानांतर हमारे यहाँ लोक माध्यमों की भी सुलझी व्यवस्था मौजूद रही है। इसके संकेत प्रागैतिहासिक काल से ही मिलते हैं।
जनसंचार के आधुनिक माध्यमों के रूप निश्चय ही अंग्रेजों से मिले हैं। चाहे समाचारपत्र हों या रेडियो, टेलीविज़न या इंटरनेट, सभी माध्यम पश्चिम से ही आए। हमने शुरुआत में उन्हें उसी रूप में अपनाया लेकिन धीरे-धीरे वे हमारी सांस्कृतिक विरासत के अंग बनते चले गए। चाहे फ़िल्में हों या टी.वी. सीरियल, एक समय के बाद वे भारतीय नाट्य परंपरा से परिचालित होने लगते हैं।
इसलिए आज के जनसंचार माध्यमों का खाका भले पश्चिमी हो, लेकिन उनकी विषयवस्तु और रंगरूप भारतीय ही हैं। चूँकि उसकी भूमिका भी कहीं अधिक बढ़ चली है, इसलिए जहाँ वह शासक वर्ग के लिए राष्ट्र निर्माण की दिशा तय करता है, वहीं जनता की भागीदारी भी सुनिश्चित करता है।
जनसंचार माध्यमों के वर्तमान प्रचलित रूपों में प्रमुख हैं- समाचारपत्र-पत्रिकाएँ, रेडियो, टेलीविज़न, सिनेमा और इंटरनेट। इन माध्यमों के ज़रिये जो भी सामग्री आज जनता तक पहुँच रही है, राष्ट्र के मानस का निर्माण करने में उसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
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भारत में जनसंचार माध्यमों का विकास : भारत में आज जनसंचार के आधुनिक माध्यम जिस रूप में मौजूद हैं, उसकी प्रेरणा भले ही पश्चिमी जनसंचार माध्यम रहे हों, लेकिन हमारे देश में भी जनसंचार माध्यमों का इतिहास कम पुराना नहीं हैं। बड़ी सहजता के साथ इसके बीज पौराणिक काल के मिथकीय पात्रों में खोजे जा सकते हैं।
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भारत में जनसंचार माध्यमों का विकास
भारत में आज जनसंचार के आधुनिक माध्यम जिस रूप में मौजूद हैं, उसकी प्रेरणा भले ही पश्चिमी जनसंचार माध्यम रहे हों, लेकिन हमारे देश में भी जनसंचार माध्यमों का इतिहास कम पुराना नहीं हैं। बड़ी सहजता के साथ इसके बीज पौराणिक काल के मिथकीय पात्रों में खोजे जा सकते हैं। देवर्षि नारद को भारत का पहला समाचार वाचक माना जाता है जो वीणा की मधुर झंकार के साथ धरती और देवलोक के बीच संवाद-सेतु थे।
लेकिन भारतीय संचार परंपरा की खासियत यह भी रही है कि राजदरबारों के समानांतर हमारे यहाँ लोक माध्यमों की भी सुलझी व्यवस्था मौजूद रही है। इसके संकेत प्रागैतिहासिक काल से ही मिलते हैं।
जनसंचार के आधुनिक माध्यमों के रूप निश्चय ही अंग्रेजों से मिले हैं। चाहे समाचारपत्र हों या रेडियो, टेलीविज़न या इंटरनेट, सभी माध्यम पश्चिम से ही आए। हमने शुरुआत में उन्हें उसी रूप में अपनाया लेकिन धीरे-धीरे वे हमारी सांस्कृतिक विरासत के अंग बनते चले गए। चाहे फ़िल्में हों या टी.वी. सीरियल, एक समय के बाद वे भारतीय नाट्य परंपरा से परिचालित होने लगते हैं।
इसलिए आज के जनसंचार माध्यमों का खाका भले पश्चिमी हो, लेकिन उनकी विषयवस्तु और रंगरूप भारतीय ही हैं। चूँकि उसकी भूमिका भी कहीं अधिक बढ़ चली है, इसलिए जहाँ वह शासक वर्ग के लिए राष्ट्र निर्माण की दिशा तय करता है, वहीं जनता की भागीदारी भी सुनिश्चित करता है।
जनसंचार माध्यमों के वर्तमान प्रचलित रूपों में प्रमुख हैं- समाचारपत्र-पत्रिकाएँ, रेडियो, टेलीविज़न, सिनेमा और इंटरनेट। इन माध्यमों के ज़रिये जो भी सामग्री आज जनता तक पहुँच रही है, राष्ट्र के मानस का निर्माण करने में उसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।