ईश्वर न मंदिर में है, न मसजिद में न काबा में हैं, न कैलाश आदि तीर्थ यात्रा में वह न कर्म करने में मिलता है, न योग साधना से, न वैरागी बनने से ये सब उपरी दिखावे है, ढोंग हैं।
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ईश्वर न मंदिर में है, न मसजिद में न काबा में हैं, न कैलाश आदि तीर्थ यात्रा में वह न कर्म करने में मिलता है, न योग साधना से, न वैरागी बनने से ये सब उपरी दिखावे है, ढोंग हैं।
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नुष्य ईश्वर को देवालय (मंदिर), मस्जिद, काबा तथा कैलाश में ढूँढता फिरता है।
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ईश्वर न मंदिर में है, न मसजिद में न काबा में हैं, न कैलाश आदि तीर्थ यात्रा में वह न कर्म करने में मिलता है, न योग साधना से, न वैरागी बनने से ये सब उपरी दिखावे है, ढोंग हैं।
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ईश्वर न मंदिर में है, न मसजिद में न काबा में हैं, न कैलाश आदि तीर्थ यात्रा में वह न कर्म करने में मिलता है, न योग साधना से, न वैरागी बनने से ये सब उपरी दिखावे है, ढोंग हैं।