परिश्रम सफलता की कुंजी है-Essay on ” Importance of Hard Work” in Hindi (नोट- “परिश्रम सफलता की कुंजी है” को अन्य तरीके से भी पूछा जा सकता है जैसे- कठिन परिश्रम ही सफलता की कुंजी है, मेहनत ही सफलता की कुंजी है, श्रम सफलता की सीढ़ी है, परिश्रम ही सच्चा धन है, परीक्षा ही सफलता की कुंजी है,
मानसिक और शारीरिक श्रम
मन लगाकर किया जाने वाला मानसिक अथवा शारीरिक श्रम परिश्रम है। मन और बुद्धि के संयोग से ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेंन्द्रियों का यथासम्भव उपयोग परिश्रम है। सफल होने की अवस्था या भाव का नाम सफलता है। दूसरे शब्दों में कार्य की सिद्धि सफलता है। परिश्रम उद्देश्य की सिद्धि का सरल साधन (कुंजी) है।
“ परिश्रम सफलता की कुंजी है “, कथन का तात्पर्य है कि मानसिक-शारीरिक श्रम उद्देश्य सिद्धि का सरल साधन है। प्रतिभा जागृत करने का उपाय है, उन्नति का द्वार है, प्रगति का सोपान है, यश का मेरुदण्ड है। कारण, ‘ नहि प्रतिज्ञामात्रेण अर्थ: सिद्धि: ‘ (अर्थात् प्रतिज्ञा मात्र से ही अर्थ सिद्धि नहीं हो जाती) और “न जाण मत्रेण कज्जनिप्पत्ती’ (जान लेने मात्र से कार्य की सिद्धि नहीं हो जाती।) हितोपदेश ने इस बात का समर्थन करते हुए कहा कि केवल इच्छा मात्र से कार्य पूर्ण नहीं होते। यदि यह सम्भव होता तो सोते हुए सिंह
के मुख में पशु स्वयमेव प्रवेश कर जाते।
सफलता के सिद्धांत – ( परिश्रम सफलता की कुंजी है )
परिश्रम सफलता की कुंजी है
सफलता रूपी ताले को खोलने के लिए चाहिए परिश्रम रूपी कुंजी। स्वामी रामतीर्थ का विचार है, ‘सफलता का पहला सिद्धांत है, ‘काम, अनवरत काम ‘ अर्थात् निरन्तर परिश्रम। हेनरी सी. क्रेक ने स्वामी रामतीर्थ का समर्थन करते हुए कहा कि -‘सफलता का कोई रहस्य नहीं | वह केवल अति परिश्रम चाहती है।’ “करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान यह सूक्ति परिश्रम से सफलता पाने का दस्तावेज है ।
महाकविभास का निष्कर्ष है, ‘यत्नै: शुभा पुरुषता भवतीह नृणाम्’ अर्थात् अच्छे प्रयत्नों से पुरुषों की पुरुषता सिद्ध होती है। अच्छे प्रयत्न अर्थात् सतत परिश्रम और पुरुषों की पुरुषता का अर्थ है मनोवांछित सफलता। कथा सरित्सागर में सोमदेव परिश्रम की सफलता पर विश्वास व्यक्त करते हुए कहते हैं–‘ धीर पुरुष उद्यम प्रारम्भ करने के अनन्तर असफल नहीं लौटते ।’
गीता में श्रीकृष्ण ने हताश अर्जुन को समझाते हुए कहा–“माम् अनुस्मर युद्धय च।’ मेरा स्मरण करो और युद्ध करो । यहाँ युद्ध परिश्रम का प्रतीक बना। सी.डब्ल्यू. बेन्डेल का कथन है, “जीवन में सफलता पाना प्रतिभा है और यह अवसर की अपेक्षा एकाग्रता और निरन्तर परिश्रम पर कहीं अधिक अवलम्बित है।
इस प्रकार महापुरुषों की वाणी ने यह प्रेरणा दी कि जीवन में श्रम को अपनाओ, परिश्रम की पूजा करो, क्योंकि यह मनुष्यों के सिर पर सफलता का सेहरा बाँधती है।
भाग्य और सफलता -( परिश्रम सफलता की कुंजी है )
भाग्यवादी परिश्रम को सफलता की कुंजी नहीं मानते। उनका विचार है–‘ भाग्यं ‘फलति सर्वत्र, न विद्या न च पौरुषम्।’ उनका दृढ़ विश्वास है, ‘ भाग्यहीन खेती करे, बैल मरे या सूखा पड़े।’ वेदव्यास जी ने महाभारत में इसकी पुष्टि करते हुए, ‘दैवं पुरुषकारेण को निवर्तयितुमुत्सहेत्।’ भाग्य को पुरुषार्थ के द्वारा कौन मिटा सकता है?
बाणभट्ट ने कादम्बरी में लिखा है–‘न हि शक्यं दैवमन्यथा कर्तुमभियुक्तेनापि’ अर्थात् परिश्रमी भी भाग्य को नहीं पलट सकता। तुलसी ने कहा, ‘विधि का लिखा को मेटन हाया। क्या यह सच नहीं कि श्रीराम और अयोध्या के प्रजाजन का उद्यम भाग्य के आगे व्यर्थ हो गया, जब उन्हें राज-मुकुट के स्थान पर वनवास मिला। चौधरी देवीलाल बाकायदा प्रधानमंत्री चुने जाकर भी प्रधानमंत्री का मुकुट न पहन सके।
यह सही है कि परिश्रम के साथ भाग्य भी सफलता का एक उपकरण है। पर यह भी सही है कि मानव का परिश्रम उसका भाग्य बनकर गुण के समान उसे अपने अभीष्ट स्थान पर ले जाता है। वेदव्यास जी ने इस बात का समर्थन करते हुए कहा, “न दैवमकृते किंचित् कस्यचिद् दातुमहति।’ अर्थात् दैव (भाग्य) किसी व्यक्ति को बिना पुरुषार्थ (परिश्रम) कुछ नहीं दे सकता। इतना ही नहीं परिश्रम का सहारा पाकर ही भाग्य भली-भाँति बढ़ता है। (कर्म समायुक्तं दैवं साधु विवर्धते-व्यास।’)
विद्यार्थी परिश्रम करता है, वह परीक्षा में सफल होता है। व्यापारी अहर्निश पुरुषार्थ करता है, लक्ष्मी उसकी दासी बनती है । कारीगर जब परिश्रम करता है तो सफलता उद्योग के चरण चूमती है वैज्ञानिक जब परिश्रम करता है तो जल, थल को दुह डालता है और नभ में भी अपनी विजय पताका फहरा देता है। वह सफलता में पाता है-मानव जीवन का सौन्दर्य ।
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परिश्रम सफलता की कुंजी है-Essay on ” Importance of Hard Work” in Hindi (नोट- “परिश्रम सफलता की कुंजी है” को अन्य तरीके से भी पूछा जा सकता है जैसे- कठिन परिश्रम ही सफलता की कुंजी है, मेहनत ही सफलता की कुंजी है, श्रम सफलता की सीढ़ी है, परिश्रम ही सच्चा धन है, परीक्षा ही सफलता की कुंजी है,
मानसिक और शारीरिक श्रम
मन लगाकर किया जाने वाला मानसिक अथवा शारीरिक श्रम परिश्रम है। मन और बुद्धि के संयोग से ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेंन्द्रियों का यथासम्भव उपयोग परिश्रम है। सफल होने की अवस्था या भाव का नाम सफलता है। दूसरे शब्दों में कार्य की सिद्धि सफलता है। परिश्रम उद्देश्य की सिद्धि का सरल साधन (कुंजी) है।
“ परिश्रम सफलता की कुंजी है “, कथन का तात्पर्य है कि मानसिक-शारीरिक श्रम उद्देश्य सिद्धि का सरल साधन है। प्रतिभा जागृत करने का उपाय है, उन्नति का द्वार है, प्रगति का सोपान है, यश का मेरुदण्ड है। कारण, ‘ नहि प्रतिज्ञामात्रेण अर्थ: सिद्धि: ‘ (अर्थात् प्रतिज्ञा मात्र से ही अर्थ सिद्धि नहीं हो जाती) और “न जाण मत्रेण कज्जनिप्पत्ती’ (जान लेने मात्र से कार्य की सिद्धि नहीं हो जाती।) हितोपदेश ने इस बात का समर्थन करते हुए कहा कि केवल इच्छा मात्र से कार्य पूर्ण नहीं होते। यदि यह सम्भव होता तो सोते हुए सिंह
के मुख में पशु स्वयमेव प्रवेश कर जाते।
सफलता के सिद्धांत – ( परिश्रम सफलता की कुंजी है )
परिश्रम सफलता की कुंजी है
सफलता रूपी ताले को खोलने के लिए चाहिए परिश्रम रूपी कुंजी। स्वामी रामतीर्थ का विचार है, ‘सफलता का पहला सिद्धांत है, ‘काम, अनवरत काम ‘ अर्थात् निरन्तर परिश्रम। हेनरी सी. क्रेक ने स्वामी रामतीर्थ का समर्थन करते हुए कहा कि -‘सफलता का कोई रहस्य नहीं | वह केवल अति परिश्रम चाहती है।’ “करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान यह सूक्ति परिश्रम से सफलता पाने का दस्तावेज है ।
महाकविभास का निष्कर्ष है, ‘यत्नै: शुभा पुरुषता भवतीह नृणाम्’ अर्थात् अच्छे प्रयत्नों से पुरुषों की पुरुषता सिद्ध होती है। अच्छे प्रयत्न अर्थात् सतत परिश्रम और पुरुषों की पुरुषता का अर्थ है मनोवांछित सफलता। कथा सरित्सागर में सोमदेव परिश्रम की सफलता पर विश्वास व्यक्त करते हुए कहते हैं–‘ धीर पुरुष उद्यम प्रारम्भ करने के अनन्तर असफल नहीं लौटते ।’
गीता में श्रीकृष्ण ने हताश अर्जुन को समझाते हुए कहा–“माम् अनुस्मर युद्धय च।’ मेरा स्मरण करो और युद्ध करो । यहाँ युद्ध परिश्रम का प्रतीक बना। सी.डब्ल्यू. बेन्डेल का कथन है, “जीवन में सफलता पाना प्रतिभा है और यह अवसर की अपेक्षा एकाग्रता और निरन्तर परिश्रम पर कहीं अधिक अवलम्बित है।
इस प्रकार महापुरुषों की वाणी ने यह प्रेरणा दी कि जीवन में श्रम को अपनाओ, परिश्रम की पूजा करो, क्योंकि यह मनुष्यों के सिर पर सफलता का सेहरा बाँधती है।
भाग्य और सफलता -( परिश्रम सफलता की कुंजी है )
भाग्यवादी परिश्रम को सफलता की कुंजी नहीं मानते। उनका विचार है–‘ भाग्यं ‘फलति सर्वत्र, न विद्या न च पौरुषम्।’ उनका दृढ़ विश्वास है, ‘ भाग्यहीन खेती करे, बैल मरे या सूखा पड़े।’ वेदव्यास जी ने महाभारत में इसकी पुष्टि करते हुए, ‘दैवं पुरुषकारेण को निवर्तयितुमुत्सहेत्।’ भाग्य को पुरुषार्थ के द्वारा कौन मिटा सकता है?
बाणभट्ट ने कादम्बरी में लिखा है–‘न हि शक्यं दैवमन्यथा कर्तुमभियुक्तेनापि’ अर्थात् परिश्रमी भी भाग्य को नहीं पलट सकता। तुलसी ने कहा, ‘विधि का लिखा को मेटन हाया। क्या यह सच नहीं कि श्रीराम और अयोध्या के प्रजाजन का उद्यम भाग्य के आगे व्यर्थ हो गया, जब उन्हें राज-मुकुट के स्थान पर वनवास मिला। चौधरी देवीलाल बाकायदा प्रधानमंत्री चुने जाकर भी प्रधानमंत्री का मुकुट न पहन सके।
यह सही है कि परिश्रम के साथ भाग्य भी सफलता का एक उपकरण है। पर यह भी सही है कि मानव का परिश्रम उसका भाग्य बनकर गुण के समान उसे अपने अभीष्ट स्थान पर ले जाता है। वेदव्यास जी ने इस बात का समर्थन करते हुए कहा, “न दैवमकृते किंचित् कस्यचिद् दातुमहति।’ अर्थात् दैव (भाग्य) किसी व्यक्ति को बिना पुरुषार्थ (परिश्रम) कुछ नहीं दे सकता। इतना ही नहीं परिश्रम का सहारा पाकर ही भाग्य भली-भाँति बढ़ता है। (कर्म समायुक्तं दैवं साधु विवर्धते-व्यास।’)
विद्यार्थी परिश्रम करता है, वह परीक्षा में सफल होता है। व्यापारी अहर्निश पुरुषार्थ करता है, लक्ष्मी उसकी दासी बनती है । कारीगर जब परिश्रम करता है तो सफलता उद्योग के चरण चूमती है वैज्ञानिक जब परिश्रम करता है तो जल, थल को दुह डालता है और नभ में भी अपनी विजय पताका फहरा देता है। वह सफलता में पाता है-मानव जीवन का सौन्दर्य ।