लोक का अर्थ है एक समाज में रह रहे साधारण लोग। साहित्य में लोक कहने से साधारणत: औपचारिक शिक्षा-दीक्षा से दूर अथवा अत्यंत सामान्य औपचारिक शिक्षा से शिक्षित शहरों से दूर परंपरागत संस्कार और रीति-रिवाजों के माध्यम से जीवन निर्वाह करनेवाले लोगों को ही इंगित किया जाता है। हालाँकि अब इस अवधारणा में परिवर्तन आ गया है। सामान्य जन से जुड़ा हुआ जो साहित्य है, उसे ही लोक साहित्य कहा जाता है। इसीलिए यह समाज का दर्पणस्वरुप है। लोक साहित्य की रचना कोई विशेष व्यक्ति करता हो, ऐसा नहीं है। समाज के साधारण लोग ही, समाज की अनुभूतियों को व्यक्त करने के लिए लोकसाहित्य की रचना करता है, जहाँ लोकसमाज का ही चित्रण होता है।
किसी भी समाज में शास्त्रीय साहित्य का आरंभ बहुत बाद में होता है। शास्त्रीय साहित्य के लिए लिपि, मानक भाषा, व्याकरण आदि की आवश्यकता होती है। किंतु जहाँ तक लोकसाहित्य की बात है, इसके लिए इन तत्त्वों की आवश्यकता नहीं होती। लोग अपनी सामान्य भाषा में ही अपने हृदयगत भावों को लोक साहित्य के माध्यम से प्रकट करते हैं। लोक साहित्य शास्त्रीय साहित्य की जननी होती है। बाद के समय में समाज में जो लिखित अथवा शास्त्रीय साहित्य का सृजन होता है, वह पुराने लोक साहित्य से ही कई बार प्रेरित होता है अथवा तत्वों को ग्रहण करता है। लोक-साहित्य लिखित नहीं होता बल्कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौखिक ही हस्तांतरित होता चला जाता है। आजकल इसकी चर्चा कम होने की वजह से हो अथवा संरक्षित करने की भावना के कारण ही हो लोक साहित्य का लिखित रूप भी सामने आने लगा है।
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Bhartiya Dharohar
Bhartiya Dharoharसंस्कृति
मनमोहक हैं असम के लोकगीत
डॉ. राजश्री देवी
लेखिका असम विश्वविद्यालय में अतिथि अध्यापिका हैं।
लोक का अर्थ है एक समाज में रह रहे साधारण लोग। साहित्य में लोक कहने से साधारणत: औपचारिक शिक्षा-दीक्षा से दूर अथवा अत्यंत सामान्य औपचारिक शिक्षा से शिक्षित शहरों से दूर परंपरागत संस्कार और रीति-रिवाजों के माध्यम से जीवन निर्वाह करनेवाले लोगों को ही इंगित किया जाता है। हालाँकि अब इस अवधारणा में परिवर्तन आ गया है। सामान्य जन से जुड़ा हुआ जो साहित्य है, उसे ही लोक साहित्य कहा जाता है। इसीलिए यह समाज का दर्पणस्वरुप है। लोक साहित्य की रचना कोई विशेष व्यक्ति करता हो, ऐसा नहीं है। समाज के साधारण लोग ही, समाज की अनुभूतियों को व्यक्त करने के लिए लोकसाहित्य की रचना करता है, जहाँ लोकसमाज का ही चित्रण होता है।
किसी भी समाज में शास्त्रीय साहित्य का आरंभ बहुत बाद में होता है। शास्त्रीय साहित्य के लिए लिपि, मानक भाषा, व्याकरण आदि की आवश्यकता होती है। किंतु जहाँ तक लोकसाहित्य की बात है, इसके लिए इन तत्त्वों की आवश्यकता नहीं होती। लोग अपनी सामान्य भाषा में ही अपने हृदयगत भावों को लोक साहित्य के माध्यम से प्रकट करते हैं। लोक साहित्य शास्त्रीय साहित्य की जननी होती है। बाद के समय में समाज में जो लिखित अथवा शास्त्रीय साहित्य का सृजन होता है, वह पुराने लोक साहित्य से ही कई बार प्रेरित होता है अथवा तत्वों को ग्रहण करता है। लोक-साहित्य लिखित नहीं होता बल्कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौखिक ही हस्तांतरित होता चला जाता है। आजकल इसकी चर्चा कम होने की वजह से हो अथवा संरक्षित करने की भावना के कारण ही हो लोक साहित्य का लिखित रूप भी सामने आने लगा है।
THANK YOU !!!
Have a good day urs!!