घर रह कर जो महिलाये बच्चों को पालतीं हैं वे उनको समय पर गर्म-गर्म खाना खिलातीं हैं ,उनका होमवर्क करने में मदद करतीं हैं और घर में रहने के कारण उस दौरान उनकी सब जरूरतों को पूरा करतीं हैं। पर ऐसे में अक्सर बच्चे माँ पर हर छोटे छोटे काम के लिए निर्भर हो जातें हैं. समय की पाबन्दी का धयान भी नहीं रहता क्योकि जब माँ याद दिलाएगी तब वे होमवर्क करेंगे।
दूसरी ओर कामकाजी महिला के बच्चों को पता रहता है कि उन्हें अपने काम स्वयं करने पड़ेगे, खुद खाना गर्म करके खाना पड़ेगा , खुद समय पर होमवर्क करना पड़ेगा और छोटे मोठे काम भी खुद करने पड़ेगे। पर चूँकि वे आधी समय अकेले रहेंगे इस कच्ची उम्र में तो भटकने की संभावना भी बढ़ जाती है। हो सकता है जब तक स्कूल से शिकायत ना आये तब तक उसकी गलतियों का माँ-बाप को पता ही ना चले।
मतलब दोनों प्रकार की महिलाओं की परवरिश के अपने-अपने फायदे हैं और नुकसान भी। पर इससे ज्यादा जरुरी है कि दोनों प्रकार की महिलाओं को बच्चों से सदा बात करते रहना चाहिए,कभी दोस्त की तरह तो कभी अभिभावक की तरह। उसके मन की बात को सुनना चाहिए। जिससे बच्चे माँ-बाप से सदा अपनी मन की बात कह सकें। घर रह कर पलने वाली महिला को उन्हें स्वयं अपना काम करने देना चाहिए ताकि उन्हें आगे के जीवन में परशानी न हो जैस अपना होमवर्क समय पर खुद करो, थोड़ा घर का काम भी करो आदि। और दूसरी ओर काम करने वाली महिलाओं को अपने बच्चों को क्वालिटी समय बच्चों को देना चाहिए।
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घर रह कर जो महिलाये बच्चों को पालतीं हैं वे उनको समय पर गर्म-गर्म खाना खिलातीं हैं ,उनका होमवर्क करने में मदद करतीं हैं और घर में रहने के कारण उस दौरान उनकी सब जरूरतों को पूरा करतीं हैं। पर ऐसे में अक्सर बच्चे माँ पर हर छोटे छोटे काम के लिए निर्भर हो जातें हैं. समय की पाबन्दी का धयान भी नहीं रहता क्योकि जब माँ याद दिलाएगी तब वे होमवर्क करेंगे।
दूसरी ओर कामकाजी महिला के बच्चों को पता रहता है कि उन्हें अपने काम स्वयं करने पड़ेगे, खुद खाना गर्म करके खाना पड़ेगा , खुद समय पर होमवर्क करना पड़ेगा और छोटे मोठे काम भी खुद करने पड़ेगे। पर चूँकि वे आधी समय अकेले रहेंगे इस कच्ची उम्र में तो भटकने की संभावना भी बढ़ जाती है। हो सकता है जब तक स्कूल से शिकायत ना आये तब तक उसकी गलतियों का माँ-बाप को पता ही ना चले।
मतलब दोनों प्रकार की महिलाओं की परवरिश के अपने-अपने फायदे हैं और नुकसान भी। पर इससे ज्यादा जरुरी है कि दोनों प्रकार की महिलाओं को बच्चों से सदा बात करते रहना चाहिए,कभी दोस्त की तरह तो कभी अभिभावक की तरह। उसके मन की बात को सुनना चाहिए। जिससे बच्चे माँ-बाप से सदा अपनी मन की बात कह सकें। घर रह कर पलने वाली महिला को उन्हें स्वयं अपना काम करने देना चाहिए ताकि उन्हें आगे के जीवन में परशानी न हो जैस अपना होमवर्क समय पर खुद करो, थोड़ा घर का काम भी करो आदि। और दूसरी ओर काम करने वाली महिलाओं को अपने बच्चों को क्वालिटी समय बच्चों को देना चाहिए।
i hope apko samjh aye
please mujhe brainliest mark karna