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भावार्थ : पीठ पीछे काम बिगाड़नेवाले था सामने प्रिय बोलने वाले ऐसे मित्र को मुंह पर दूध रखे हुए विष के घड़े के समान त्याग देना चाहिए ।
को हि भारः समर्थानां किं दूरं व्यवसायिनाम् |
को विदेशः सुविद्यानां कः परः प्रियवादिनाम् ||
भावार्थ - शक्तिशाली और समर्थ व्यक्तियों के लिये कैसा भी
बडा भार हो उसे उठाने में , चतुर व्यवसायियों को दूरस्थ स्थानों
में व्यवसाय हेतु जाने में ,तथा प्रकाण्ड विद्वानों को विदेश में
प्रवास करने में भला क्या असुविधा होगी ? इसी प्रकार एक मृदु
भाषी व्यक्ति के लिये क्या कोई भी व्यक्ति पराये के समान होगा ?
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भावार्थ : पीठ पीछे काम बिगाड़नेवाले था सामने प्रिय बोलने वाले ऐसे मित्र को मुंह पर दूध रखे हुए विष के घड़े के समान त्याग देना चाहिए ।
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को हि भारः समर्थानां किं दूरं व्यवसायिनाम् |
को विदेशः सुविद्यानां कः परः प्रियवादिनाम् ||
भावार्थ - शक्तिशाली और समर्थ व्यक्तियों के लिये कैसा भी
बडा भार हो उसे उठाने में , चतुर व्यवसायियों को दूरस्थ स्थानों
में व्यवसाय हेतु जाने में ,तथा प्रकाण्ड विद्वानों को विदेश में
प्रवास करने में भला क्या असुविधा होगी ? इसी प्रकार एक मृदु
भाषी व्यक्ति के लिये क्या कोई भी व्यक्ति पराये के समान होगा ?