अपने कच्चे घर को वो दिल से सजा रहे थे
कहीं मोर कहीं चिड़िया हाथों से बना रहे थे
कहीं चरती गाय तो कहीं फूल उगा रहे थे
अपने ग्रामीण परिवेश को हुबहू उतार रहे थे
कितनी ग़रीबी थी पर ख़ुश नज़र आ रहे थे
जितना था पास उसमें ही संतोष जता रहे थे
लग रहा था जैसे प्रभु का आभार जता रहे थे
जीवन को ज़िंदगी समझ कर मुस्कुरा रहे थे
कितनी ज़रूरी है ज़रूरतों से ज़्यादा ख़ुशी
हम उनकी ख़ुशी को एक टक देखे जा रहे थे
जो आज तक सीख नहीं पाये थे ज़िंदगी में
आज हम इन लोगों से सीखना चाह रहे थे।
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अपने कच्चे घर को वो दिल से सजा रहे थे
कहीं मोर कहीं चिड़िया हाथों से बना रहे थे
कहीं चरती गाय तो कहीं फूल उगा रहे थे
अपने ग्रामीण परिवेश को हुबहू उतार रहे थे
कितनी ग़रीबी थी पर ख़ुश नज़र आ रहे थे
जितना था पास उसमें ही संतोष जता रहे थे
लग रहा था जैसे प्रभु का आभार जता रहे थे
जीवन को ज़िंदगी समझ कर मुस्कुरा रहे थे
कितनी ज़रूरी है ज़रूरतों से ज़्यादा ख़ुशी
हम उनकी ख़ुशी को एक टक देखे जा रहे थे
जो आज तक सीख नहीं पाये थे ज़िंदगी में
आज हम इन लोगों से सीखना चाह रहे थे।
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