श्रीकृष्ण ने मित्र सुदामा की आवभगत को बड़े उत्साह और प्रेम से की हो सकता है क्योंकि दोस्तों के बीच की भावनाओं का महत्व बड़ा होता है। श्रीकृष्ण ने अपने मित्र सुदामा के आगमन को गर्म अपकर्षण दिया और इससे उनका स्नेह और दोस्ती का साबित किया।
हालांकि, श्रीकृष्ण ने सुदामा को खाली हाथ किया हो सकता है क्योंकि वे देवों के भगवान थे और उन्हें यह समझ में आया कि उनके मित्र की आत्मा के लिए सामाजिक सुख और धन से ज़्यादा महत्वपूर्ण चीज़ें हैं। उन्होंने सुदामा के भावनाओं और भगवान के प्रति उनके भक्ति को महत्वपूर्ण माना और उनके द्वारका यात्रा से जुड़े साधना और संदेश को महत्वपूर्ण बनाया।
इस प्रकार, श्रीकृष्ण ने अपने मित्र के साथ अपनी दोस्ती और भगवान के प्रति उनके भक्ति को महत्वपूर्ण बनाया और उनके द्वारका यात्रा को एक महत्वपूर्ण संदेश के रूप में प्रस्तुत किया।
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श्रीकृष्ण ने मित्र सुदामा की आवभगत को बड़े उत्साह और प्रेम से की हो सकता है क्योंकि दोस्तों के बीच की भावनाओं का महत्व बड़ा होता है। श्रीकृष्ण ने अपने मित्र सुदामा के आगमन को गर्म अपकर्षण दिया और इससे उनका स्नेह और दोस्ती का साबित किया।
हालांकि, श्रीकृष्ण ने सुदामा को खाली हाथ किया हो सकता है क्योंकि वे देवों के भगवान थे और उन्हें यह समझ में आया कि उनके मित्र की आत्मा के लिए सामाजिक सुख और धन से ज़्यादा महत्वपूर्ण चीज़ें हैं। उन्होंने सुदामा के भावनाओं और भगवान के प्रति उनके भक्ति को महत्वपूर्ण माना और उनके द्वारका यात्रा से जुड़े साधना और संदेश को महत्वपूर्ण बनाया।
इस प्रकार, श्रीकृष्ण ने अपने मित्र के साथ अपनी दोस्ती और भगवान के प्रति उनके भक्ति को महत्वपूर्ण बनाया और उनके द्वारका यात्रा को एक महत्वपूर्ण संदेश के रूप में प्रस्तुत किया।
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