किस भी फ़िल्म यूनिट या धारावाहिक बनाने वाली कंपनी को ‘पटकथा’ तैयार करने के लिए, सबसे पहले जो चीज़ चाहिए होती है, वो है ‘कथा’। कथा ही नहीं होगी तो पटकथा कैसे कहेगी? अब सवाल यह उठता है कि यह कथा या कहानी हमें कहाँ से मिलेगी? तो इसके कई स्रोत हो सकते हैं हमारे स्वयं के साथ या आसपास की जिंदगी में घटी कोई घटना, अखबार में छपा कोई समाचार, हमारी कल्पनाशक्ति से उपजी कोई कहानी, इतिहास के पन्नों से झाँकता कोई व्यक्तित्व या सच्चा किस्सा अथवा साहित्य की किसी अन्य विधा की कोई रचना। मशहूर उपन्यासों-कहानियों पर फ़िल्म या सीरियल बनाने की परंपरा काफ़ी पुरानी है।
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किस भी फ़िल्म यूनिट या धारावाहिक बनाने वाली कंपनी को ‘पटकथा’ तैयार करने के लिए, सबसे पहले जो चीज़ चाहिए होती है, वो है ‘कथा’। कथा ही नहीं होगी तो पटकथा कैसे कहेगी? अब सवाल यह उठता है कि यह कथा या कहानी हमें कहाँ से मिलेगी? तो इसके कई स्रोत हो सकते हैं हमारे स्वयं के साथ या आसपास की जिंदगी में घटी कोई घटना, अखबार में छपा कोई समाचार, हमारी कल्पनाशक्ति से उपजी कोई कहानी, इतिहास के पन्नों से झाँकता कोई व्यक्तित्व या सच्चा किस्सा अथवा साहित्य की किसी अन्य विधा की कोई रचना। मशहूर उपन्यासों-कहानियों पर फ़िल्म या सीरियल बनाने की परंपरा काफ़ी पुरानी है।