भारत विभिन्नताओं का देश है । यहाँ भिन्न-भिन्न जातियों, धर्मों व संप्रदायों के लोग निवास करते हैं जिनका रहन-सहन, पहनावा, बोलियाँ व मान्यताएँ भी परस्पर भिन्न हैं ।
भारत के उत्तरी कोने से दक्षिणी कोने तक भ्रमण करें तो निस्संदेह भिन्नताओं को देखते हुए यह विश्वास करना कठिन हो जाता है कि ये सब भारत के ही भू भाग हैं । यहाँ का धरातल कहीं पर्वतीय है तो कहीं सपाट, कहीं घने जंगल हैं तो कहीं पठार । भाषा की विविधता भी यहाँ देखने को मिलती है । कुछ प्रदेशों में हिंदी भाषी लोग अधिक हैं तो कुछ में अवधी या फिर मराठी भाषा प्रधान है ।
कई प्रदेशों में अन्य क्षेत्रीय भाषा-भाषियों की प्रधानता है । उक्त सभी विभिन्नताएँ एक ओर जहाँ अनेकता में एकता के रंग बिखेरती हैं वहीं दूसरी ओर विभिन्न सामाजिक कुरीतियों को भी जन्म देती हैं । हमारी ये सामाजिक कुरीतियाँ कहीं पर प्रांतीयता की देन हैं तो कहीं भाषावाद, संप्रदाय या फिर जातिवाद की देन हैं ।
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सामाजिक कुरीतियाँ पर निबंध!
भारत विभिन्नताओं का देश है । यहाँ भिन्न-भिन्न जातियों, धर्मों व संप्रदायों के लोग निवास करते हैं जिनका रहन-सहन, पहनावा, बोलियाँ व मान्यताएँ भी परस्पर भिन्न हैं ।
भारत के उत्तरी कोने से दक्षिणी कोने तक भ्रमण करें तो निस्संदेह भिन्नताओं को देखते हुए यह विश्वास करना कठिन हो जाता है कि ये सब भारत के ही भू भाग हैं । यहाँ का धरातल कहीं पर्वतीय है तो कहीं सपाट, कहीं घने जंगल हैं तो कहीं पठार । भाषा की विविधता भी यहाँ देखने को मिलती है । कुछ प्रदेशों में हिंदी भाषी लोग अधिक हैं तो कुछ में अवधी या फिर मराठी भाषा प्रधान है ।
कई प्रदेशों में अन्य क्षेत्रीय भाषा-भाषियों की प्रधानता है । उक्त सभी विभिन्नताएँ एक ओर जहाँ अनेकता में एकता के रंग बिखेरती हैं वहीं दूसरी ओर विभिन्न सामाजिक कुरीतियों को भी जन्म देती हैं । हमारी ये सामाजिक कुरीतियाँ कहीं पर प्रांतीयता की देन हैं तो कहीं भाषावाद, संप्रदाय या फिर जातिवाद की देन हैं ।