कल्पना में आज तक उड़ते रहे तुम, साधना से सिहरकर मुड़ते रहे तुम। अब तुम्हें आकाश में उड़ने न दूँगा, आज धरती पर बसाने आ रहा हूँ। कल्पना में आज तक उड़ते रहे तुम , साधना से सिहरकर मुड़ते रहे तुम । अब तुम्हें आकाश में उड़ने न दूँगा , आज धरती पर बसाने आ रहा हूँ ।
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yah to poem hai question kahan hai