पानी की कहानी का साहित्यिक रूप निबंध है। कथा के लेखक रामचन्द्र तिवारी हैं। इसमें लेखक ने ओस की बूंद के बारे में बताया है। लेखक ने पूरी कहानी व्यक्त की है कि अतीत में ओस की बूंद कैसी थी और उसका जन्म कैसे और कैसे हुआ। लेखक अपने बारे में बताता है कि एक दिन की बात है, जब वह पैदल एक पेड़ के नीचे से गुजर रहा था। सहसा उसके हाथ पर ओस की एक बूंद गिरी। यह बूँद मोतियों की तरह चमक रही थी और सितार की खनखनाहट जैसी झनझना रही थी। ध्यान से देखने पर पता चला कि बूंद के दो टुकड़े हो गए हैं और उसकी दोनों आवाजें गूंज रही हैं। तभी अचानक एक आवाज आई - "सुनो, सुनो"। जब यह आवाज कई बार आई तो लेखक ने पूछा कौन हो तुम? ओस की बूंद खुशी से बोली - "मैं ओस की बूंद हूं। मैं बेर के पेड़ से आई हूं।" लेखक ने कहा- ''झूठे आओ, कहीं बेर के पेड़ पर पानी का फव्वारा है जो टपक रहा है।''
अब बूंद अपनी कहानी सुनाती है और कहती है कि जो पेड़ आप देख रहे हैं वह जमीन के नीचे जितना बड़ा है। इसकी जड़ें और चीखें बड़ी क्रूर होती हैं। वे मुझ जैसे असंख्य जल-कणों को बलपूर्वक खींच लेते हैं, जिससे मेरे मन में उनके लिए क्रोध और द्वेष उत्पन्न हो जाता है।
जल की कहानी की साहित्यिक विधा निबन्ध है। कहानी के लेखक रामचंद्र तिवारी हैं। इसमें लेखक ने ओस की बूंद के बारे में बताया है। पूर्वकाल में ओस की बूंद का स्वरूप कैसा था और उसका जन्म कैसे और कैसे हुआ, इसकी पूरी कहानी लेखक ने अपनी रचना में व्यक्त की है। लेखक अपने बारे में बताता है कि एक दिन की बात है, जब वह पैदल एक पेड़ के नीचे से गुजर रहा था। अचानक ओस की एक बूंद उसके हाथ पर गिरी। यह बूँद मोतियों की तरह चमक रही थी और सितार की खनखनाहट की तरह झनझना रही थी। गौर से देखने पर पता चला कि बूंद दो टुकड़ों में बंट गई है और उसकी दोनों आवाजें गूंज रही हैं। तभी अचानक एक आवाज आई - "सुनो, सुनो"। जब यह आवाज कई बार आई, तब लेखक ने पूछा कि तुम कौन हो? ओस की बूंद ने खुशी से कहा - "मैं ओस की बूंद हूं। मैं बेर के पेड़ से आई हूं।" लेखक ने कहा- "आओ झूठे, कहीं बेर के पेड़ पर पानी का फव्वारा है जो टपका है।"
अब बूंद अपनी कहानी सुनाती है और कहती है कि जो पेड़ आप देख रहे हैं वह जमीन के नीचे जितना बड़ा है। इसकी जड़ें और चीत्कार बड़ी क्रूर होती हैं। वे मुझ जैसे असंख्य जल-कणों को बलपूर्वक खींच लेते हैं, इसी कारण मेरे मन में उनके लिए क्रोध और द्वेष उत्पन्न होता है।
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पानी की कहानी का साहित्यिक रूप निबंध है। कथा के लेखक रामचन्द्र तिवारी हैं। इसमें लेखक ने ओस की बूंद के बारे में बताया है। लेखक ने पूरी कहानी व्यक्त की है कि अतीत में ओस की बूंद कैसी थी और उसका जन्म कैसे और कैसे हुआ। लेखक अपने बारे में बताता है कि एक दिन की बात है, जब वह पैदल एक पेड़ के नीचे से गुजर रहा था। सहसा उसके हाथ पर ओस की एक बूंद गिरी। यह बूँद मोतियों की तरह चमक रही थी और सितार की खनखनाहट जैसी झनझना रही थी। ध्यान से देखने पर पता चला कि बूंद के दो टुकड़े हो गए हैं और उसकी दोनों आवाजें गूंज रही हैं। तभी अचानक एक आवाज आई - "सुनो, सुनो"। जब यह आवाज कई बार आई तो लेखक ने पूछा कौन हो तुम? ओस की बूंद खुशी से बोली - "मैं ओस की बूंद हूं। मैं बेर के पेड़ से आई हूं।" लेखक ने कहा- ''झूठे आओ, कहीं बेर के पेड़ पर पानी का फव्वारा है जो टपक रहा है।''
अब बूंद अपनी कहानी सुनाती है और कहती है कि जो पेड़ आप देख रहे हैं वह जमीन के नीचे जितना बड़ा है। इसकी जड़ें और चीखें बड़ी क्रूर होती हैं। वे मुझ जैसे असंख्य जल-कणों को बलपूर्वक खींच लेते हैं, जिससे मेरे मन में उनके लिए क्रोध और द्वेष उत्पन्न हो जाता है।
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जल की कहानी की साहित्यिक विधा निबन्ध है। कहानी के लेखक रामचंद्र तिवारी हैं। इसमें लेखक ने ओस की बूंद के बारे में बताया है। पूर्वकाल में ओस की बूंद का स्वरूप कैसा था और उसका जन्म कैसे और कैसे हुआ, इसकी पूरी कहानी लेखक ने अपनी रचना में व्यक्त की है। लेखक अपने बारे में बताता है कि एक दिन की बात है, जब वह पैदल एक पेड़ के नीचे से गुजर रहा था। अचानक ओस की एक बूंद उसके हाथ पर गिरी। यह बूँद मोतियों की तरह चमक रही थी और सितार की खनखनाहट की तरह झनझना रही थी। गौर से देखने पर पता चला कि बूंद दो टुकड़ों में बंट गई है और उसकी दोनों आवाजें गूंज रही हैं। तभी अचानक एक आवाज आई - "सुनो, सुनो"। जब यह आवाज कई बार आई, तब लेखक ने पूछा कि तुम कौन हो? ओस की बूंद ने खुशी से कहा - "मैं ओस की बूंद हूं। मैं बेर के पेड़ से आई हूं।" लेखक ने कहा- "आओ झूठे, कहीं बेर के पेड़ पर पानी का फव्वारा है जो टपका है।"
अब बूंद अपनी कहानी सुनाती है और कहती है कि जो पेड़ आप देख रहे हैं वह जमीन के नीचे जितना बड़ा है। इसकी जड़ें और चीत्कार बड़ी क्रूर होती हैं। वे मुझ जैसे असंख्य जल-कणों को बलपूर्वक खींच लेते हैं, इसी कारण मेरे मन में उनके लिए क्रोध और द्वेष उत्पन्न होता है।