dialogue between the Earth and the Moon in which the Earth is disheartened describing life from its inception to the present but the Moon cheers it up
. पृथ्वी और िाोंद के मध्य सोंवाद तिखिए तजसमेंपृथ्वी अपनेअखित्व मेंआनेसेवितमान िक के जीवन के बारेमेंवणतन करिेहुए तनराश हैतकों िुिोंद्रमा उसेउत्सातहि करिा है।(सोंवाद सेसोंबोंतिि तित्र भी बनाइए) A-4 साइजशीट पर कीतजए।
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Explanation:
पृथ्वी: (निराशा से) आह! मेरे प्यारे चंद्रमा, आज मैं बहुत ही निराश हूँ। जीवन के अपने आरंभ से लेकर अब तक की सभी घटनाओं को देखकर, मुझे यह अनुभव हो रहा है कि मेरा अस्तित्व बेहद निरर्थक है।
चंद्रमा: (प्रसन्नता से) हे पृथ्वी, तुम अपने आप को ऐसे कैसे समझ सकती हो? तुमने जीवन के लिए एक आदर्श मंच प्रदान किया है। जीवन का अस्तित्व, समय के साथ तुम्हारी सुंदरता और विविधता में व्यक्त होता है।
पृथ्वी: तुम्हें यह बातें कैसे मालूम हो गई, चंद्रमा? क्या तुम यह नहीं जानते कि मैंने युगों तक जीवित होने की कोशिशें देखी है, परंतु विषमताओं और संकटों के बीच वे बदल गई हैं?
चंद्रमा: हाँ, पृथ्वी, मैं यह जानता हूँ कि तुम्हारे ऊपर संकट और बदलाव आए हैं, परंतु वे तुम्हारे संतुलन और साहस को दर्शाते हैं। तुम्हारी मानवीय जाति ने विजय प्राप्त की है, उन्नति की है, और यह संघर्ष के बिना संभव नहीं था।
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