रवींद्रनाथ टैगोर, , ( हाँ से देवताओं का अंचल आरंभ होता है ', इसका बड़ा बढ़िया प्रमाण यह मिला कि मानवों की, य सृष्टि मोटर को देवताओं की सृष्टि मानव के पीछे-पीछे चलना पड़ा। मंडी से कुल्लू-प्रदेश में जाते, हुए व्यास नदी को रस्सी के झूलना पुल से पार करना पड़ता है। उस पर से लारी का जाना काफ़ी खतरनाक, है।
रवींद्रनाथ टैगोर, , ( हाँ से देवताओं का अंचल आरंभ होता है ', इसका बड़ा बढ़िया प्रमाण यह मिला कि मानवों की, य सृष्टि मोटर को देवताओं की सृष्टि मानव के पीछे-पीछे चलना पड़ा। मंडी से कुल्लू-प्रदेश में जाते, हुए व्यास नदी को रस्सी के झूलना पुल से पार करना पड़ता है। उस पर से लारी का जाना काफ़ी खतरनाक, है।
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रवींद्रनाथ टैगोर, , ( हाँ से देवताओं का अंचल आरंभ होता है ', इसका बड़ा बढ़िया प्रमाण यह मिला कि मानवों की, य सृष्टि मोटर को देवताओं की सृष्टि मानव के पीछे-पीछे चलना पड़ा। मंडी से कुल्लू-प्रदेश में जाते, हुए व्यास नदी को रस्सी के झूलना पुल से पार करना पड़ता है। उस पर से लारी का जाना काफ़ी खतरनाक, है।
Answer:
रवींद्रनाथ टैगोर, , ( हाँ से देवताओं का अंचल आरंभ होता है ', इसका बड़ा बढ़िया प्रमाण यह मिला कि मानवों की, य सृष्टि मोटर को देवताओं की सृष्टि मानव के पीछे-पीछे चलना पड़ा। मंडी से कुल्लू-प्रदेश में जाते, हुए व्यास नदी को रस्सी के झूलना पुल से पार करना पड़ता है। उस पर से लारी का जाना काफ़ी खतरनाक, है।