वदनं प्रसादसदनं सदयं हृदयं सुधामुचो वाचः।
     करणं परोपकरणं येषां केषां न ते वन्द्याः।।

भावार्थ :
सदैव प्रसन्न-वदन (हँसमुख), हृदय में दया की भावना रखने वाले, अमृत के समान मीठे वचन बोलने वाले तथा परोपकार में लिप्त रहने वाले व्यक्ति भला किसके लिए वन्दनीय नहीं होगा।

क्रोध – वाच्यावाच्यं प्रकुपितो न विजानाति कर्हिचित्।
नाकार्यमस्ति क्रुद्धस्य नवाच्यं विद्यते क्वचित् ॥

भावार्थ :
क्रोध की दशा में मनुष्य को कहने और न कहने योग्य बातों का विवेक नहीं रहता । क्रुद्ध मनुष्य कुछ भी कह सकता है और कुछ भी बक सकता है । उसके लिए कुछ भी अकार्य और अवाच्य नहीं है ।

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I have to speak onstage on Saturday
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