भ्रमरगीत का शाब्दिक अर्थ है- भ्रमर का गान अथवा गुंजन। भ्रमरगीत काव्य परम्परा का मूल एवं आधारभूत ग्रंथ श्रीमद्भागवत है। भागवत में कृष्ण कथा के अन्य प्रसंगों के साथ 47वें अध्याय में भ्रमरगीत का प्रसंग आया है। इसमें भ्रमरगीत का प्रारम्भ श्रीकृष्ण के गोकुल लीला के स्मरण से होता है। उन्हें बचपन के ग्वाल’- बाल सखाओं की याद आती है, साथ ही गोपिकाओं की भी। वे अपने मित्र उद्धव को गोपियों को सांत्वना देने के लिये ब्रज भेजते है। ब्रज पहुँचते ही उद्धव नंद- यशोदा से मिलते हैं और अपने उद्गारों से कृष्ण के ब्रह्म स्वरूप का प्रतिपादन करते हैं। श्रीकृष्ण के इसी स्वरूप की प्राप्ति के लिये वे ज्ञान का उपदेश नंद-यशोदा को देते हैं। बाद में गोंपियां उन्हें एकांत में ले जाती है। इसी वक्त एक भ्रमर उडता हुआ वहाँ आ जाता है। गोपियाँ भ्रमर के बहाने श्रीकृष्ण के प्रति उलाहनै, उपालम्भ आरम्भ कर देती है। इस प्रकार गोपियों का भ्रमर को लक्ष्य करके उपालम्भ करना ही भ्रमर गीत के नाम से पुकार जाता है। गोपियों ने भ्रमर को लक्ष्य करके उद्धव और श्रीकृष्ण दोनों को उल्हाने दिये, अथवा व्यंग्य किया और अनेक तरह से फटकार लगाई। इस बात के आधार बनाते हुए कहा जा सकता है कि भ्रमरगीत का तात्पर्य भ्रमर को इंगित करके गाया जाने वाला गीत भी है।
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भ्रमरगीत का शाब्दिक अर्थ है- भ्रमर का गान अथवा गुंजन। भ्रमरगीत काव्य परम्परा का मूल एवं आधारभूत ग्रंथ श्रीमद्भागवत है। भागवत में कृष्ण कथा के अन्य प्रसंगों के साथ 47वें अध्याय में भ्रमरगीत का प्रसंग आया है। इसमें भ्रमरगीत का प्रारम्भ श्रीकृष्ण के गोकुल लीला के स्मरण से होता है। उन्हें बचपन के ग्वाल’- बाल सखाओं की याद आती है, साथ ही गोपिकाओं की भी। वे अपने मित्र उद्धव को गोपियों को सांत्वना देने के लिये ब्रज भेजते है। ब्रज पहुँचते ही उद्धव नंद- यशोदा से मिलते हैं और अपने उद्गारों से कृष्ण के ब्रह्म स्वरूप का प्रतिपादन करते हैं। श्रीकृष्ण के इसी स्वरूप की प्राप्ति के लिये वे ज्ञान का उपदेश नंद-यशोदा को देते हैं। बाद में गोंपियां उन्हें एकांत में ले जाती है। इसी वक्त एक भ्रमर उडता हुआ वहाँ आ जाता है। गोपियाँ भ्रमर के बहाने श्रीकृष्ण के प्रति उलाहनै, उपालम्भ आरम्भ कर देती है। इस प्रकार गोपियों का भ्रमर को लक्ष्य करके उपालम्भ करना ही भ्रमर गीत के नाम से पुकार जाता है। गोपियों ने भ्रमर को लक्ष्य करके उद्धव और श्रीकृष्ण दोनों को उल्हाने दिये, अथवा व्यंग्य किया और अनेक तरह से फटकार लगाई। इस बात के आधार बनाते हुए कहा जा सकता है कि भ्रमरगीत का तात्पर्य भ्रमर को इंगित करके गाया जाने वाला गीत भी है।