आजादी की लड़ाई (1857-1947) के समय, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनों में कई विषयों पर लोग सहमत थे। यहां कुछ मुख्य कारण हैं जिन पर आजादी की लड़ाई के समय लोगों की सामूहिक मत सहमत थी:
विदेशी शासन के खिलाफ:
सभी वर्गों और समूहों के बीच एक मुख्य समझौता यह था कि विदेशी शासन, विशेषकर ब्रिटिश साम्राज्य, के खिलाफ था। लोगों में एक आम इच्छा थी कि वे अपने देश को स्वतंत्र बनाएं और बार-बार विदेशी शासन से राहत पाएं।
स्वराज और स्वतंत्रता:
सभी सामाजिक वर्गों के लोग स्वराज और स्वतंत्रता की अभिलाषा रखते थे। इसमें राजनीतिक नेताओं, समाजसेवी, शिक्षकों, और आम जनता की एकता थी कि भारत अपने निर्मित भविष्य का नेतृत्व करने में सक्षम है।
सामाजिक न्याय और असमानता के खिलाफ:
आजादी की लड़ाई के समय, अनेक समाजसेवी और नेता सामाजिक न्याय और असमानता के खिलाफ थे। उन्होंने विभिन्न समाजिक बुराइयों, जातिवाद, और विशेषता के खिलाफ आवाज उठाई और समाज में समानता की ओर प्रयास किया।
सार्वभौमिक शिक्षा के लिए मांग:
स्वतंत्र भारत के नेता और आंदोलनकारी शिक्षा के क्षेत्र में सार्वभौमिक शिक्षा की मांग करते थे। वे यह मानते थे कि शिक्षा सभी को समान अवसर प्रदान करनी चाहिए।
सामाजिक एकता और एकात्मता:
आंध्र, कानपूर, बाराकपुर, अजमेर, स्वदेशी आंदोलन, और कई अन्य आंदोलनों में लोगों की एकता और सामाजिक एकात्मता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सामाजिक बदलाव और नई आदतें:
आजादी की लड़ाई ने सामाजिक बदलाव और नई सोच को प्रोत्साहित किया। लोगों ने पुरानी आदतों और बुराईयों के खिलाफ खड़ा होकर नई सोच की ओर बढ़ने का प्रयास किया।
इन सभी कारणों के संघर्ष में एक सामूहिक मत बना जो ने आजादी की प्राप्ति के लिए संघर्ष किया।
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आजादी की लड़ाई (1857-1947) के समय, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनों में कई विषयों पर लोग सहमत थे। यहां कुछ मुख्य कारण हैं जिन पर आजादी की लड़ाई के समय लोगों की सामूहिक मत सहमत थी:
विदेशी शासन के खिलाफ:
सभी वर्गों और समूहों के बीच एक मुख्य समझौता यह था कि विदेशी शासन, विशेषकर ब्रिटिश साम्राज्य, के खिलाफ था। लोगों में एक आम इच्छा थी कि वे अपने देश को स्वतंत्र बनाएं और बार-बार विदेशी शासन से राहत पाएं।
स्वराज और स्वतंत्रता:
सभी सामाजिक वर्गों के लोग स्वराज और स्वतंत्रता की अभिलाषा रखते थे। इसमें राजनीतिक नेताओं, समाजसेवी, शिक्षकों, और आम जनता की एकता थी कि भारत अपने निर्मित भविष्य का नेतृत्व करने में सक्षम है।
सामाजिक न्याय और असमानता के खिलाफ:
आजादी की लड़ाई के समय, अनेक समाजसेवी और नेता सामाजिक न्याय और असमानता के खिलाफ थे। उन्होंने विभिन्न समाजिक बुराइयों, जातिवाद, और विशेषता के खिलाफ आवाज उठाई और समाज में समानता की ओर प्रयास किया।
सार्वभौमिक शिक्षा के लिए मांग:
स्वतंत्र भारत के नेता और आंदोलनकारी शिक्षा के क्षेत्र में सार्वभौमिक शिक्षा की मांग करते थे। वे यह मानते थे कि शिक्षा सभी को समान अवसर प्रदान करनी चाहिए।
सामाजिक एकता और एकात्मता:
आंध्र, कानपूर, बाराकपुर, अजमेर, स्वदेशी आंदोलन, और कई अन्य आंदोलनों में लोगों की एकता और सामाजिक एकात्मता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सामाजिक बदलाव और नई आदतें:
आजादी की लड़ाई ने सामाजिक बदलाव और नई सोच को प्रोत्साहित किया। लोगों ने पुरानी आदतों और बुराईयों के खिलाफ खड़ा होकर नई सोच की ओर बढ़ने का प्रयास किया।
इन सभी कारणों के संघर्ष में एक सामूहिक मत बना जो ने आजादी की प्राप्ति के लिए संघर्ष किया।
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