बात अठन्नी की उद्देश्य हमारे समाज में कपटी लोगों के आचरण को जनता के सामने लाना है जिससे कि वह समझ सकें कि वह दोहरा जीवन जीते हैं.। साथ ही साथ लेखक इस विषय में जनता को संवेदनशील बना कर सही मार्ग को निर्धारित करना चाहता है । इंजीनियर और मजिस्ट्रेट जो दोनों ही रिश्वतखोर हैं अपने नौकरों के साथ असंवेदनशील बर्ताव करते हैं और बिचारे रसीला अठन्नी चुराने के गुनाह पर छह महीने कि सजा दे देते हैं । यह अत्यंत उपहासजनक है कि जो स्वयं पांच सौ और हजार रूपये तक की रिश्वत लेते हैं वो रसीला को अधन्नी के पीछे इतनी कठोर सजा सहने के लिए बाध्य कर देते हैं । तुलसीदास ने ठीक ही कहा है 'समर्थ को नहीं कोई दोष गोसाईं । समाज में व्याप्त भेदभाव, भ्रष्ट्राचार, अन्याय और असमानता पर यह कहानी एक करारी चोट है।
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बात अठन्नी की उद्देश्य हमारे समाज में कपटी लोगों के आचरण को जनता के सामने लाना है जिससे कि वह समझ सकें कि वह दोहरा जीवन जीते हैं.। साथ ही साथ लेखक इस विषय में जनता को संवेदनशील बना कर सही मार्ग को निर्धारित करना चाहता है । इंजीनियर और मजिस्ट्रेट जो दोनों ही रिश्वतखोर हैं अपने नौकरों के साथ असंवेदनशील बर्ताव करते हैं और बिचारे रसीला अठन्नी चुराने के गुनाह पर छह महीने कि सजा दे देते हैं । यह अत्यंत उपहासजनक है कि जो स्वयं पांच सौ और हजार रूपये तक की रिश्वत लेते हैं वो रसीला को अधन्नी के पीछे इतनी कठोर सजा सहने के लिए बाध्य कर देते हैं । तुलसीदास ने ठीक ही कहा है 'समर्थ को नहीं कोई दोष गोसाईं । समाज में व्याप्त भेदभाव, भ्रष्ट्राचार, अन्याय और असमानता पर यह कहानी एक करारी चोट है।
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बात अठन्नी की’ कहानी का शीर्षक बिल्कुल सार्थक है। शीर्षक जहाँ संक्षिप्त, आकर्षक और जिज्ञासावद्र्धक
है वहीं पूरी कहानी शुरु से लेकर अंत तक शीर्षक के चारो ओर घुमती है। यदि इस कहानी से इन शब्दों को
निकाल दें तो कहानी खोखली प्रतीत होगी। अठन्नी के माध्यम से कहानीकार ने समाज के उच्च वर्ग और
निम्न वर्ग की स्थिति को उभारने की कोशिश की है। जहाँ समाज का उच्च वर्ग बड़े-बड़े अपराध करके,रिश्वत
लेकर भी सभ्य इंसान कहलाने का दावा भरता है, वहीं समाज का निम्न वर्ग मज़बूरी वश अठन्नी की
हेरा-फेरी के लिए जेल की सज़ा काटता है।
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