1. Oneness of God: Guru Nanak Dev Ji taught the belief in the existence of one God who is omnipresent and can be realized through meditation and selfless service.
2. Equality: Guru Nanak Dev Ji emphasized the equality of all human beings, irrespective of caste, gender, or social status, and rejected discrimination based on these factors.
3. Selfless Service: Guru Nanak Dev Ji encouraged his followers to engage in selfless service (seva) to humanity as a way to connect with and serve God.
4. Honest Living: Guru Nanak Dev Ji stressed the importance of earning a living through honest means and denounced fraud and deceit in all forms.
5. Devotional Singing: Guru Nanak Dev Ji popularized the practice of singing hymns and prayers to connect with God, which is known as Kirtan.
6. Compassion: Guru Nanak Dev Ji emphasized the value of compassion and kindness towards all living beings, promoting a sense of empathy and care for others.
7. Rejecting Rituals: Guru Nanak Dev Ji criticized empty rituals and external displays of piety, emphasizing the importance of true devotion and living a righteous life.
8. Meditation: Guru Nanak Dev Ji advocated for the practice of meditation as a means to attain spiritual enlightenment and experience union with God.
9. Honest Dialogue: Guru Nanak Dev Ji encouraged open and honest dialogue with people of different faiths and backgrounds, promoting mutual understanding and respect.
10. Humility: Guru Nanak Dev Ji emphasized the virtue of humility, teaching his followers to remain grounded and not succumb to ego or pride.
11. Women's Rights: Guru Nanak Dev Ji challenged the prevailing societal norms and advocated for women's rights and equality, treating them as equal to men in all aspects of life.
12. Universal Brotherhood: Guru Nanak Dev Ji preached the idea of universal brotherhood, transcending boundaries of religion, caste, and nationality, and emphasized the unity of all humanity.
नाम जपो- गुरु नानक जी ने कहा है- ‘सोचै सोचि न होवई, जो सोची लखवार। चुपै चुपि न होवई, जे लाई रहालिवतार।’ यानी ईश्वर का रहस्य सिर्फ सोचने से नहीं जाना जा सकता है, इसलिए नाम जपे। नाम जपना यानी ईश्वर का नाम बार-बार सुनना और दोहराना। नानक जी ने इसके दो तरीके बताए हैं- संगत में रहकर जप किया जाए। संगत यानी पवित्र संतों की मंडली। या एकांत में जप किया जाए। जप से चित्त एकाग्र हो जाता है और आध्यात्मिक-मानसिक शक्ति मिलती है। मनुष्य का तेज बढ़ जाता है।
1499 ईस्वी में जब गुरु नानक देव जी 30 साल के हो गए थे, तब उनमें अध्यात्म परिपक्व हो चुका था। आज जिसे हम पवित्र गुरुग्रंथ साहिब के नाम से जानते हैं, उसके शुरुआती 940 दोहे इन्हीं की देन हैं। आदिग्रंथ की शुरुआत मूल मंत्र से होती है, जिसमें हमारा ‘एक ओंकार’ से साक्षात्कार होता है। मान्यता है कि गुरु नानक देव जी अपने समय के सारे धर्मग्रंथों से भली-भांति परिचित थे। उनकी सबसे बड़ी सीख थी- हर व्यक्ति में, हर दिशा में, हर जगह ईश्वर मौजूद है। जीवन के प्रति उनके नजरिए और सीख इन चार किस्सों के माध्यम से आसानी से समझी जा सकती है।
किरत करो- यानी ईमानदारी से मेहनत कर आजीविका कमाना। श्रम की भावना सिख अवधारणा का भी केंद्र है। इसे स्थापित करने के लिए नानक जी ने एक अमीर जमींदार के शानदार भोजन की तुलना में गरीब के कठिन श्रम के माध्यम से अर्जित मोटे भोजन को प्राथमिकता दी थी।
5) गुरु नानक देव जी का सबसे बड़ा संदेश
मक्का पहुंचने से पहले नानक देव जी थककर आरामगाह में रुक गए। उन्होंने मक्का की ओर चरण किए थे। यह देखकर हाजियों की सेवा में लगा जियोन नाम का शख्स नाराज हो गया और बोला-आप मक्का मदीना की तरफ चरण करके क्यों लेटे हैं? नानक जी बोले- ‘अगर तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा, तो खुद ही चरण उधर कर दो, जिधर खुदा न हो।’ नानक जी ने जियोन को समझाया- हर दिशा में खुदा है। सच्चा साधक वही है जो अच्छे काम करता हुआ खुदा को हमेशा याद रखता है।
वंड छको- एक बार गुरु नानक जी दो बेटों और लेहना (गुरु अंगद देव) के साथ थे। सामने एक शव ढंका हुआ था। नानक जी ने पूछा- इसे कौन खाएगा। बेटे मौन थे। लेहना ने कहा- मैं खाऊंगा। उन्हें गुरु पर विश्वास था। कपड़ा हटाने पर पवित्र भोजन मिला। लेहना ने इसे गुरु को समर्पित कर ग्रहण किया। नानक जी ने कहा- लेहना को पवित्र भोजन मिला, क्योंकि उसमें समर्पण का भाव और विश्वास की ताकत है। सिख इसी आधार पर आय का दसवां हिस्सा साझा करते हैं, जिसे दसवंध कहते हैं। इसी से लंगर चलता है।
गुरुनानक देवजी को आजीविका के लिए दूसरों के यहां काम भी करना पड़ा। बहनोई जैराम जी के जरिए वे सुल्तानपुर लोधी के नवाब के शाही भंडार की देखरेख करने लगे। उनका एक प्रसंग प्रचलित है। एक बार वे तराजू से अनाज तौलकर ग्राहक को दे रहे थे तो गिनते-गिनते जब 11, 12, 13 पर पहुंचे तो उन्हें कुछ अनुभूति हुई। वह तौलते जाते थे और 13 के बाद ‘तेरा फिर तेरा और सब तेरा ही तेरा’ कहते गए। इस घटना के बाद वह मानने लगे थे कि ‘जो कुछ है वह परमबह्म्र का है, मेरा क्या है?’
नानक जी अपने शिष्य मरदाना के साथ कंगनवाल पहुंचे तो उन्होंने देखा कि कुछ लोग जनता को परेशान कर रहे हैं। नानक जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया- बसते रहो। दूसरे गांव पहुंचे, तो अच्छे लोग दिखे। गांव वालों को नानक जी ने आशीर्वाद दिया- उजड़ जाओ। इस पर मरदाना को आश्चर्य हुआ। उसने पूछा-जिन्होंने अपशब्द कहे, उन्हें बसने का और जिन्होंने सत्कार किया, उन्हें आपने उजड़ने का वर दिया, ऐसा क्यों? नानक जी बोले- बुरे लोग एक जगह रहें, ताकि बुराई न फैले और अच्छे लोग फैलें ताकि अच्छाई का प्रसार हो।
नानक जी हरिद्वार गए, वहां लोगों को गंगा किनारे पूर्व में अर्घ्य देते देखा। नानक इसके उलट पश्चिम में जल देने लगे। लोगों ने पूछा-आप क्या कर रहे हैं? नानक जी ने पूछा, आप क्या कर रहे हैं? जवाब मिला, हम पूर्वजों को जल दे रहे हैं। नानक जी बोले-‘मैं पंजाब में खेतों को पानी दे रहा हूं।’ लोग बोले- इतनी दूर पानी खेतों तक कैसे जाएगा? इस पर नानक जी बोले- जब पानी पूर्वजों तक जा सकता है, तो यह खेतों तक क्यों नहीं जाएगा? मानों तो ईश्वर यहां मौजूद हर कण और हर व्यक्ति में है।’
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1. Oneness of God: Guru Nanak Dev Ji taught the belief in the existence of one God who is omnipresent and can be realized through meditation and selfless service.
2. Equality: Guru Nanak Dev Ji emphasized the equality of all human beings, irrespective of caste, gender, or social status, and rejected discrimination based on these factors.
3. Selfless Service: Guru Nanak Dev Ji encouraged his followers to engage in selfless service (seva) to humanity as a way to connect with and serve God.
4. Honest Living: Guru Nanak Dev Ji stressed the importance of earning a living through honest means and denounced fraud and deceit in all forms.
5. Devotional Singing: Guru Nanak Dev Ji popularized the practice of singing hymns and prayers to connect with God, which is known as Kirtan.
6. Compassion: Guru Nanak Dev Ji emphasized the value of compassion and kindness towards all living beings, promoting a sense of empathy and care for others.
7. Rejecting Rituals: Guru Nanak Dev Ji criticized empty rituals and external displays of piety, emphasizing the importance of true devotion and living a righteous life.
8. Meditation: Guru Nanak Dev Ji advocated for the practice of meditation as a means to attain spiritual enlightenment and experience union with God.
9. Honest Dialogue: Guru Nanak Dev Ji encouraged open and honest dialogue with people of different faiths and backgrounds, promoting mutual understanding and respect.
10. Humility: Guru Nanak Dev Ji emphasized the virtue of humility, teaching his followers to remain grounded and not succumb to ego or pride.
11. Women's Rights: Guru Nanak Dev Ji challenged the prevailing societal norms and advocated for women's rights and equality, treating them as equal to men in all aspects of life.
12. Universal Brotherhood: Guru Nanak Dev Ji preached the idea of universal brotherhood, transcending boundaries of religion, caste, and nationality, and emphasized the unity of all humanity.
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नाम जपो- गुरु नानक जी ने कहा है- ‘सोचै सोचि न होवई, जो सोची लखवार। चुपै चुपि न होवई, जे लाई रहालिवतार।’ यानी ईश्वर का रहस्य सिर्फ सोचने से नहीं जाना जा सकता है, इसलिए नाम जपे। नाम जपना यानी ईश्वर का नाम बार-बार सुनना और दोहराना। नानक जी ने इसके दो तरीके बताए हैं- संगत में रहकर जप किया जाए। संगत यानी पवित्र संतों की मंडली। या एकांत में जप किया जाए। जप से चित्त एकाग्र हो जाता है और आध्यात्मिक-मानसिक शक्ति मिलती है। मनुष्य का तेज बढ़ जाता है।
1499 ईस्वी में जब गुरु नानक देव जी 30 साल के हो गए थे, तब उनमें अध्यात्म परिपक्व हो चुका था। आज जिसे हम पवित्र गुरुग्रंथ साहिब के नाम से जानते हैं, उसके शुरुआती 940 दोहे इन्हीं की देन हैं। आदिग्रंथ की शुरुआत मूल मंत्र से होती है, जिसमें हमारा ‘एक ओंकार’ से साक्षात्कार होता है। मान्यता है कि गुरु नानक देव जी अपने समय के सारे धर्मग्रंथों से भली-भांति परिचित थे। उनकी सबसे बड़ी सीख थी- हर व्यक्ति में, हर दिशा में, हर जगह ईश्वर मौजूद है। जीवन के प्रति उनके नजरिए और सीख इन चार किस्सों के माध्यम से आसानी से समझी जा सकती है।
किरत करो- यानी ईमानदारी से मेहनत कर आजीविका कमाना। श्रम की भावना सिख अवधारणा का भी केंद्र है। इसे स्थापित करने के लिए नानक जी ने एक अमीर जमींदार के शानदार भोजन की तुलना में गरीब के कठिन श्रम के माध्यम से अर्जित मोटे भोजन को प्राथमिकता दी थी।
5) गुरु नानक देव जी का सबसे बड़ा संदेश
मक्का पहुंचने से पहले नानक देव जी थककर आरामगाह में रुक गए। उन्होंने मक्का की ओर चरण किए थे। यह देखकर हाजियों की सेवा में लगा जियोन नाम का शख्स नाराज हो गया और बोला-आप मक्का मदीना की तरफ चरण करके क्यों लेटे हैं? नानक जी बोले- ‘अगर तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा, तो खुद ही चरण उधर कर दो, जिधर खुदा न हो।’ नानक जी ने जियोन को समझाया- हर दिशा में खुदा है। सच्चा साधक वही है जो अच्छे काम करता हुआ खुदा को हमेशा याद रखता है।
वंड छको- एक बार गुरु नानक जी दो बेटों और लेहना (गुरु अंगद देव) के साथ थे। सामने एक शव ढंका हुआ था। नानक जी ने पूछा- इसे कौन खाएगा। बेटे मौन थे। लेहना ने कहा- मैं खाऊंगा। उन्हें गुरु पर विश्वास था। कपड़ा हटाने पर पवित्र भोजन मिला। लेहना ने इसे गुरु को समर्पित कर ग्रहण किया। नानक जी ने कहा- लेहना को पवित्र भोजन मिला, क्योंकि उसमें समर्पण का भाव और विश्वास की ताकत है। सिख इसी आधार पर आय का दसवां हिस्सा साझा करते हैं, जिसे दसवंध कहते हैं। इसी से लंगर चलता है।
गुरुनानक देवजी को आजीविका के लिए दूसरों के यहां काम भी करना पड़ा। बहनोई जैराम जी के जरिए वे सुल्तानपुर लोधी के नवाब के शाही भंडार की देखरेख करने लगे। उनका एक प्रसंग प्रचलित है। एक बार वे तराजू से अनाज तौलकर ग्राहक को दे रहे थे तो गिनते-गिनते जब 11, 12, 13 पर पहुंचे तो उन्हें कुछ अनुभूति हुई। वह तौलते जाते थे और 13 के बाद ‘तेरा फिर तेरा और सब तेरा ही तेरा’ कहते गए। इस घटना के बाद वह मानने लगे थे कि ‘जो कुछ है वह परमबह्म्र का है, मेरा क्या है?’
नानक जी अपने शिष्य मरदाना के साथ कंगनवाल पहुंचे तो उन्होंने देखा कि कुछ लोग जनता को परेशान कर रहे हैं। नानक जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया- बसते रहो। दूसरे गांव पहुंचे, तो अच्छे लोग दिखे। गांव वालों को नानक जी ने आशीर्वाद दिया- उजड़ जाओ। इस पर मरदाना को आश्चर्य हुआ। उसने पूछा-जिन्होंने अपशब्द कहे, उन्हें बसने का और जिन्होंने सत्कार किया, उन्हें आपने उजड़ने का वर दिया, ऐसा क्यों? नानक जी बोले- बुरे लोग एक जगह रहें, ताकि बुराई न फैले और अच्छे लोग फैलें ताकि अच्छाई का प्रसार हो।
नानक जी हरिद्वार गए, वहां लोगों को गंगा किनारे पूर्व में अर्घ्य देते देखा। नानक इसके उलट पश्चिम में जल देने लगे। लोगों ने पूछा-आप क्या कर रहे हैं? नानक जी ने पूछा, आप क्या कर रहे हैं? जवाब मिला, हम पूर्वजों को जल दे रहे हैं। नानक जी बोले-‘मैं पंजाब में खेतों को पानी दे रहा हूं।’ लोग बोले- इतनी दूर पानी खेतों तक कैसे जाएगा? इस पर नानक जी बोले- जब पानी पूर्वजों तक जा सकता है, तो यह खेतों तक क्यों नहीं जाएगा? मानों तो ईश्वर यहां मौजूद हर कण और हर व्यक्ति में है।’