दाल में नमक तेज़ होने कारण बताते हुए प्रभा ने कहा कि जैसे ही वह सब्ज़ी छौंक कर थोड़ा इधर-उधर हुई भाभी ने मुट्ठी-भर नमक डाल दिया था। समर ने पूछा कि क्या उसने उन्हें डालते हुए देखा था। प्रभा ने कहा कि नहीं। मुन्नी बीबी जी ने डालते हुए देखा था और उन्होंने ही उसे बताया था। समर ने सोचा शायद मुन्नी ने इसीलिए उससे कहा था "भैया, भाभी से बोलना, उन्होंने कुछ भी नहीं किया..."
समर प्रभा से एक और प्रश्न पूछता है -"तुम पहले दिन हमसे क्यों नहीं बोली थीं? आने के दिन ही इतना बड़ा अपमान क्यों किया?"
प्रभा पुरानी बातों पर दोबारा सोचना नहीं चाहती थी लेकिन समर को जानने की बड़ी उत्सुकता थी। अत: प्रभा ने कहा कि पता नहीं समर को उस दिन अपना अपमान क्यों लगा क्योंकि प्रभा ने समर का कोई अपमान नहीं किया था। दरअसल, शादी की वजह से हफ्तों जागने की थकान थी, शरीर दर्द से टूट रहा था, तबीयत बहुत उदास थी। ज़रा-ज़रा सी देर के बाद घर की याद आती थी। फिर मुन्नी बीबी जी ने अपना किस्सा सुनाया तो मन और भी उदास हो गया। संयोग से उसी दिन खिड़की के ठीक सामने वाले घर में साँवल की बहू जल कर मर गई। बोलने का बिल्कुल ही मन नहीं कर रहा था, बस रोने की इच्छा हो रही थी। मुन्नी बीबी से पता चला कि तुम विवाह ही नहीं करना चाहते थे तो सारी हिम्मत समाप्त हो गई। ऐसे में क्या बात करती?
समर ने प्रभा से जानना चाहा कि भाभी और अम्मा जी उससे नाराज़ क्यों हैं। प्रभा ने कोई उत्तर नहीं दिया। फिर कुछ रुकर कहा कि शायद यह उनकी किस्मत में ही लिखा है। समर ने प्रभा को कसम दी कि वह जो भी जानना चाहता है उसे सच सच बता दे। प्रभा समर के उलझे बालों में अँगुलियाँ चलाती हुई बोली कि अम्मा-बाबूजी की नाराज़गी का कारण दहेज में कुछ न मिलना है। रुपया-पैसा, अच्छा ज़ेवर-कपड़ा कुछ भी तो नहीं ला पाई। ऐसी स्थिति में पढ़ी-लोखी होना भी एक दुर्गुण बन गया। मुन्नी बीबीजी ने खूब प्रचार किया कि भाभी भले दहेज कम लाई हैं पर देखने-सुनने में बड़ी बहू से लाख दरज़े अच्छी हैं। बस भाभी को नाराज़ करने के लिए ये बातें ही काफ़ी हैं।
समर को याद आया कि कल वह छत पर बैठी रो रही थी। उसने पूछा कि तुम कल रो क्यों रही थी? प्रभा ने बड़े कड़े स्वर में कहा - "मैं क्या, उस दिन कोई भी खूब रोता। इतनी बड़ी हो गई, अभी तक चरित्र पर किसी ने एक शब्द नहीं कहा। उस दिन जो सुना..."फिर उसने भावाविष्ट स्वर में कहा कि जिस दिन समर ने उसके चरित्र पर संदेह किया तो उस दिन वह ज़हर खा लेगी।
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दाल में नमक तेज़ होने कारण बताते हुए प्रभा ने कहा कि जैसे ही वह सब्ज़ी छौंक कर थोड़ा इधर-उधर हुई भाभी ने मुट्ठी-भर नमक डाल दिया था। समर ने पूछा कि क्या उसने उन्हें डालते हुए देखा था। प्रभा ने कहा कि नहीं। मुन्नी बीबी जी ने डालते हुए देखा था और उन्होंने ही उसे बताया था। समर ने सोचा शायद मुन्नी ने इसीलिए उससे कहा था "भैया, भाभी से बोलना, उन्होंने कुछ भी नहीं किया..."
समर प्रभा से एक और प्रश्न पूछता है -"तुम पहले दिन हमसे क्यों नहीं बोली थीं? आने के दिन ही इतना बड़ा अपमान क्यों किया?"
प्रभा पुरानी बातों पर दोबारा सोचना नहीं चाहती थी लेकिन समर को जानने की बड़ी उत्सुकता थी। अत: प्रभा ने कहा कि पता नहीं समर को उस दिन अपना अपमान क्यों लगा क्योंकि प्रभा ने समर का कोई अपमान नहीं किया था। दरअसल, शादी की वजह से हफ्तों जागने की थकान थी, शरीर दर्द से टूट रहा था, तबीयत बहुत उदास थी। ज़रा-ज़रा सी देर के बाद घर की याद आती थी। फिर मुन्नी बीबी जी ने अपना किस्सा सुनाया तो मन और भी उदास हो गया। संयोग से उसी दिन खिड़की के ठीक सामने वाले घर में साँवल की बहू जल कर मर गई। बोलने का बिल्कुल ही मन नहीं कर रहा था, बस रोने की इच्छा हो रही थी। मुन्नी बीबी से पता चला कि तुम विवाह ही नहीं करना चाहते थे तो सारी हिम्मत समाप्त हो गई। ऐसे में क्या बात करती?
समर ने प्रभा से जानना चाहा कि भाभी और अम्मा जी उससे नाराज़ क्यों हैं। प्रभा ने कोई उत्तर नहीं दिया। फिर कुछ रुकर कहा कि शायद यह उनकी किस्मत में ही लिखा है। समर ने प्रभा को कसम दी कि वह जो भी जानना चाहता है उसे सच सच बता दे। प्रभा समर के उलझे बालों में अँगुलियाँ चलाती हुई बोली कि अम्मा-बाबूजी की नाराज़गी का कारण दहेज में कुछ न मिलना है। रुपया-पैसा, अच्छा ज़ेवर-कपड़ा कुछ भी तो नहीं ला पाई। ऐसी स्थिति में पढ़ी-लोखी होना भी एक दुर्गुण बन गया। मुन्नी बीबीजी ने खूब प्रचार किया कि भाभी भले दहेज कम लाई हैं पर देखने-सुनने में बड़ी बहू से लाख दरज़े अच्छी हैं। बस भाभी को नाराज़ करने के लिए ये बातें ही काफ़ी हैं।
समर को याद आया कि कल वह छत पर बैठी रो रही थी। उसने पूछा कि तुम कल रो क्यों रही थी? प्रभा ने बड़े कड़े स्वर में कहा - "मैं क्या, उस दिन कोई भी खूब रोता। इतनी बड़ी हो गई, अभी तक चरित्र पर किसी ने एक शब्द नहीं कहा। उस दिन जो सुना..."फिर उसने भावाविष्ट स्वर में कहा कि जिस दिन समर ने उसके चरित्र पर संदेह किया तो उस दिन वह ज़हर खा लेगी।
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