लेखिका को नीलकंठ की कौन-कौन-सी चेष्टाएँ बहुत भाती थीं?
लेखिका को नीलकंठ का गरदन ऊँची कर देखना, मेघों की साँवली छाया में अपने इंद्रधनुष के गुच्छे जैसे पंखों को मंडलाकार बनाकर नाचना, विशेष भंगिमा के साथ उसे नीची कर दाना चुगना और पानी-पीना तथा गरदन टेढ़ी कर शब्द सुनना आदि चेष्टाएँ बहुत भाती थीं।
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लेखिका को नीलकंठ की कौन-कौन-सी चेष्टाएँ बहुत भाती थीं?
लेखिका को नीलकंठ का गरदन ऊँची कर देखना, मेघों की साँवली छाया में अपने इंद्रधनुष के गुच्छे जैसे पंखों को मंडलाकार बनाकर नाचना, विशेष भंगिमा के साथ उसे नीची कर दाना चुगना और पानी-पीना तथा गरदन टेढ़ी कर शब्द सुनना आदि चेष्टाएँ बहुत भाती थीं।
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पंखों का सतरंगी मंडलाकार छाता तानकर नृत्य की भंगिमा में खड़ा हो जाना।
हथेली पर रखे हुए भुने चने कोमलता से हौले-हौले उठाकर खाना।
मेघ के गर्जन की ताल पर नृत्य करना और वर्षा की बूंदों की रिमझिमाहट तेज़ होने पर उसका वेग बढ़ते जाना।
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