मनुष्य ने अपनी उत्पत्ति के साथ से ही पृथ्वी का दोहन करना आरंभ कर दिया था। परन्तु तब दोहन की प्रक्रिया बहुत ही मंद थी। जैसे-जैसे मनुष्य का विकास होता गया, उसने प्रकृति का दोहन तेज़ी से करना आरंभ कर दिया। उसने रहने के लिए पेड़ों को काटा , आवास के लिए ईंट के लिए मिट्टी का प्रयोग किया, कोयले, सीमेंट, धातु, हीरे आदि की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उसने पृथ्वी को खोदा।
आज वाहनों को चलाने के लिए वह तेल के कुएँ का प्रयोग कर रहा है। वह पृथ्वी के गर्भ से तेल निकाल रहा है। मनुष्य की आबादी के साथ वाहनों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है। वाहनों को चलाने के लिए पेट्रोल और डीज़ल की आवश्यकता पड़ती है।
विश्व में अधिकतर घरों में वाहन हैं। विश्व में इसी कारण तेल की आपूर्ति बढ़ गई है। यदि इसी तरह तेल की आपूर्ति बढ़ती गई, तो एक दिन पृथ्वी के गर्भ से तेल मिलना असंभव हो जाएगा। इसका परिणाम यह होगा कि संसार के सभी वाहन ठप्प पड़ जाएंगे। लोग पुनः आरंभिक समय में पहुँच जाएँगे, जहाँ लोग जानवरों का प्रयोग किया करते थे।
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मनुष्य ने अपनी उत्पत्ति के साथ से ही पृथ्वी का दोहन करना आरंभ कर दिया था। परन्तु तब दोहन की प्रक्रिया बहुत ही मंद थी। जैसे-जैसे मनुष्य का विकास होता गया, उसने प्रकृति का दोहन तेज़ी से करना आरंभ कर दिया। उसने रहने के लिए पेड़ों को काटा , आवास के लिए ईंट के लिए मिट्टी का प्रयोग किया, कोयले, सीमेंट, धातु, हीरे आदि की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उसने पृथ्वी को खोदा।
आज वाहनों को चलाने के लिए वह तेल के कुएँ का प्रयोग कर रहा है। वह पृथ्वी के गर्भ से तेल निकाल रहा है। मनुष्य की आबादी के साथ वाहनों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है। वाहनों को चलाने के लिए पेट्रोल और डीज़ल की आवश्यकता पड़ती है।
विश्व में अधिकतर घरों में वाहन हैं। विश्व में इसी कारण तेल की आपूर्ति बढ़ गई है। यदि इसी तरह तेल की आपूर्ति बढ़ती गई, तो एक दिन पृथ्वी के गर्भ से तेल मिलना असंभव हो जाएगा। इसका परिणाम यह होगा कि संसार के सभी वाहन ठप्प पड़ जाएंगे। लोग पुनः आरंभिक समय में पहुँच जाएँगे, जहाँ लोग जानवरों का प्रयोग किया करते थे।