• खुदीराम बोस जैसा व्यक्तित्व होने के कारण ही आज हम आज़ाद भारत में जीवन व्यतीत कर रहे हैं। क्रांतिकारी शहीदों के बलिदान को सार्थक करने के लिए देश के प्रति हमारा क्या कर्तव्य होना चाहिए।
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खुदीराम बोस (बांग्ला: ক্ষুদিরাম বসু /क्षुदिराम बसु ) जन्म: १२ ,मागशीर्ष 1811 / 03 दिसम्बर 1889 / मृत्यु : २० श्रवण 1830 / ११ अगस्त 1908 ) भारतीय स्वाधीनता के लिये मात्र 18 वर्ष की आयु में भारतवर्ष की स्वतन्त्रता के लिए फाँसी पर चढ़ गये।
कुछ इतिहासकारों की यह धारणा है कि वे अपने देश के लिये फाँसी पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के ज्वलन्त तथा युवा क्रान्तिकारी देशभक्त थे। किंतु खुदीराम से पूर्व 17 जनवरी 1872 को 68 कूकाओं के सार्वजनिक नरसंहार के समय 13 वर्ष का एक बालक भी शहीद हुआ था। उपलब्ध तथ्यानुसार उस बालक को, जिसका नंबर 50वाँ था, जैसे ही तोप के सामने लाया गया, उसने लुधियाना के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर कावन की दाढ़ी कसकर पकड़ ली और तब तक नहीं छोड़ी जब तक उसके दोनों हाथ तलवार से काट नहीं दिये गए बाद में उसे उसी तलवार से मौत के घाट उतार दिया गया था। (देखें सरफरोशी की तमन्ना भाग 4 पृष्ठ 13)
I got it from my sister's Dash Bakhati book class 9
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इस प्रकार के महान क्रांतिकारी शहीदों के बलिदान को सार्थक करने के लिए, हमारा कर्तव्य है देश के प्रति समर्पित रहना। हमें देशहित में योगदान देना चाहिए, समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रयास करना चाहिए, और राष्ट्रीय उद्यमों और विकास के प्रति सहभागिता दिखाना चाहिए।