अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्।

दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्।।16.2।।
तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहो नातिमानिता।

भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत।।16.3।।

Translation

।।16.2।।अहिंसा, सत्यभाषण; क्रोध न करना; संसारकी कामनाका त्याग; अन्तःकरणमें राग-द्वेषजनित हलचलका न होना; चुगली न करना; प्राणियोंपर दया करना सांसारिक विषयोंमें न ललचाना; अन्तःकरणकी कोमलता; अकर्तव्य करनेमें लज्जा; चपलताका अभाव।

।।16.3।।तेज (प्रभाव), क्षमा, धैर्य, शरीरकी शुद्धि, वैरभावका न रहना और मानको न चाहना, हे भरतवंशी अर्जुन ! ये सभी दैवी सम्पदाको प्राप्त हुए मनुष्यके लक्षण हैं।

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