निर्देश: दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
विश्व में हर व्यक्ति सुख चाहता है। लेकित इसकी प्राप्ति का मंत्र वह नहीं जानता। भौतिक सुखों को ही सच्चा सुख मानने की भूल वह करता चला आ रहा है। संसार में प्रत्येक सम्बन्ध के साथ संयोग-वियोग जुड़ा हुआ है। दिन के साथ रात, सुख के साथ दुःख, लाभ के साथ हानि, मान के साथ अपमान जुड़ा हुआ है। यदि कोई विषय ऐसा है जिसके साथ कुछ भी नहीं जुड़ा है तो वह है आनन्द। यह अंतःकरण का विषय है, पराश्रित नहीं है। संवेदनशील व्यक्ति ही आनन्द की अनुभूति कर सकता है। सुखी होने के लिए दूसरों को सुखी देखकर सुख का अनुभव करना व दुखियों को देखकर करुणा से द्रवित होना आवश्यक है। संवेदनाशून्य व्यक्ति कभी सुखी नहीं हो सकते। जो कर्म को कर्तव्य समझकर निष्ठापूर्वक करते है, वे ही आनन्द की अनुभूति कर सकते हैं। सच्चा सुख आसक्ति के त्याग में है, कर्म के त्यागने में नहीं। कर्म से प्राप्त होने वाले फल के प्रति आसक्ति त्यागने पर ही व्यक्ति सुखी जीवन व्यतीत कर सकता है।
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निर्देश: दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
विश्व में हर व्यक्ति सुख चाहता है। लेकित इसकी प्राप्ति का मंत्र वह नहीं जानता। भौतिक सुखों को ही सच्चा सुख मानने की भूल वह करता चला आ रहा है। संसार में प्रत्येक सम्बन्ध के साथ संयोग-वियोग जुड़ा हुआ है। दिन के साथ रात, सुख के साथ दुःख, लाभ के साथ हानि, मान के साथ अपमान जुड़ा हुआ है। यदि कोई विषय ऐसा है जिसके साथ कुछ भी नहीं जुड़ा है तो वह है आनन्द। यह अंतःकरण का विषय है, पराश्रित नहीं है। संवेदनशील व्यक्ति ही आनन्द की अनुभूति कर सकता है। सुखी होने के लिए दूसरों को सुखी देखकर सुख का अनुभव करना व दुखियों को देखकर करुणा से द्रवित होना आवश्यक है। संवेदनाशून्य व्यक्ति कभी सुखी नहीं हो सकते। जो कर्म को कर्तव्य समझकर निष्ठापूर्वक करते है, वे ही आनन्द की अनुभूति कर सकते हैं। सच्चा सुख आसक्ति के त्याग में है, कर्म के त्यागने में नहीं। कर्म से प्राप्त होने वाले फल के प्रति आसक्ति त्यागने पर ही व्यक्ति सुखी जीवन व्यतीत कर सकता है।