इस श्लोक में यह कहा गया है कि एक व्यक्ति जो सदाचार में रहता है, वह हमेशा प्रसन्न रहता है और उसमें द्वेष या कामना का अभाव होता है। जब वह सदा समता रखता है और सब पर एक समान दृष्टिकोण बनाए रखता है, तब उसका व्यवहार सर्वत्र समान रहता है। इस नीतिश्लोक ने सदाचार और समरसता की महत्वपूर्णता को बताया है।
Answers & Comments
Answer:
नीतिश्लोक:
**श्लोक:**
एवं सदाचारः सदैव प्रसन्नो,
यो न द्वेष्टि न काङ्क्षति।
यदा च सर्वत्र नित्यं विगतश्च,
सदा समः सर्वत्र करोति।।
**अर्थ:**
इस श्लोक में यह कहा गया है कि एक व्यक्ति जो सदाचार में रहता है, वह हमेशा प्रसन्न रहता है और उसमें द्वेष या कामना का अभाव होता है। जब वह सदा समता रखता है और सब पर एक समान दृष्टिकोण बनाए रखता है, तब उसका व्यवहार सर्वत्र समान रहता है। इस नीतिश्लोक ने सदाचार और समरसता की महत्वपूर्णता को बताया है।