कबीर की साखियों की भाषा की विशेषता है कि यह जन भाषा है। उन्होंने जनचेतना और जनभावनाओं को अपनी सधुक्कड़ी भाषा द्वारा साखियों के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाया है। इसलिए डॉ० हजारी प्रसाद विवेदी ने इनकी भाषा को भावानुरूपिणी माना है। अपनी चमत्कारिक भाषा के कारण आज भी इनके दोहे लोगों की जुबान पर हैं।
कबीर की भाषा को सधुक्कडी भी कहा जाता है। वे जैसा बोलते थे वैसा ही लिखा गया है। भाषा में लयबद्धता, उपदेशात्मकता, प्रवाह, सहजता, सरलता शैली है। लोकभाषा का भी प्रयोग हुआ है; जैसे – खायै, नेग, मुवा, जाल्या, आँगणि आदि
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कबीर की साखियों की भाषा की विशेषता है कि यह जन भाषा है। उन्होंने जनचेतना और जनभावनाओं को अपनी सधुक्कड़ी भाषा द्वारा साखियों के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाया है। इसलिए डॉ० हजारी प्रसाद विवेदी ने इनकी भाषा को भावानुरूपिणी माना है। अपनी चमत्कारिक भाषा के कारण आज भी इनके दोहे लोगों की जुबान पर हैं।
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कबीर की भाषा को सधुक्कडी भी कहा जाता है। वे जैसा बोलते थे वैसा ही लिखा गया है। भाषा में लयबद्धता, उपदेशात्मकता, प्रवाह, सहजता, सरलता शैली है। लोकभाषा का भी प्रयोग हुआ है; जैसे – खायै, नेग, मुवा, जाल्या, आँगणि आदि