वर्षा ऋतु के आगमन का संदेश लेकर उपस्थित होता है आषाढ़ का महीना। आषाढ़ के बादल जड़-चेतन-अचेतन संपूर्ण प्राणियों के जीवन में अपना प्रभाव डालते हुए आकाश में छा जाते हैं। जेठ की गर्मी से तपती वसुंधरा का नन्ही-नन्ही बूंदों से अभिषेक करते हुए आषाढ़ के आगमन के साथ ही प्रकृति का रंग बदल जाता है। प्रकृति हरी हो उठती है। पेड़-पौधे आंखों को ठंडक देने लगते हैं। बदलाव के इस मोहक सौंदर्य ने कवि और कलाकार सभी को सदा से आकर्षित किया है। कालिदास ने कभी आषाढ़ के मेघ से यक्ष की विरहिणी को प्रेम संदेश भिजवाया था- ‘आषाढ़स्य प्रथमदिवसे मेघमाश्लिष्टसानुं वप्रक्रीडापरिणतगजप्रेक्षणीयं ददर्श।’
ऐसे में रीतिकाल के प्रेम मार्गी सूफी कवि मलिक मोहम्मद जायसी का प्रसिद्ध बारहमासा सहज ही स्मरण हो आता है-
‘चढ़ा असाढ़, गगन घन गाजा,
साजा बिरह दुंद दल बाजा।
मालिनी अवस्थी। वर्षा ऋतु के आगमन का संदेश लेकर उपस्थित होता है आषाढ़ का महीना। आषाढ़ के बादल जड़-चेतन-अचेतन संपूर्ण प्राणियों के जीवन में अपना प्रभाव डालते हुए आकाश में छा जाते हैं। जेठ की गर्मी से तपती वसुंधरा का नन्ही-नन्ही बूंदों से अभिषेक करते हुए आषाढ़ के आगमन के साथ ही प्रकृति का रंग बदल जाता है। प्रकृति हरी हो उठती है। पेड़-पौधे आंखों को ठंडक देने लगते हैं। बदलाव के इस मोहक सौंदर्य ने कवि और कलाकार सभी को सदा से आकर्षित किया है। कालिदास ने कभी आषाढ़ के मेघ से यक्ष की विरहिणी को प्रेम संदेश भिजवाया था- ‘आषाढ़स्य प्रथमदिवसे मेघमाश्लिष्टसानुं वप्रक्रीडापरिणतगजप्रेक्षणीयं ददर्श।’
ऐसे में रीतिकाल के प्रेम मार्गी सूफी कवि मलिक मोहम्मद जायसी का प्रसिद्ध बारहमासा सहज ही स्मरण हो आता है-
‘चढ़ा असाढ़, गगन घन गाजा,
साजा बिरह दुंद दल बाजा।
सावन में बरसती हर बूंद के साथ सज रही प्रकृति का सिंगार देख मन बरबस ही गा उठता है
सावन बरस मेह अति पानी,
मरन परीं हौं विरह झुरानी।
भरि भादौं दुपहर अति भारी,
कैसे भरों रयनि अंधियारी।
मंदिर सून पिय अंतही बसा,
सेज नाग भई दहि दहि डसा।।’
थम जाती थी दुनिया सारी
आषाढ़ माह से ही चतुर्मास प्रारंभ हो जाता है। यह चार महीने की अवधि है जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलती है। वर्षा ऋतु के चार महीने हैं-आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद और अश्विन। ग्राम समाज में और आम बोलचाल में इसे चौमासा कहते हैं। वर्षा आरंभ होते ही नदी, ताल-तलैया, पोखर, खेत-खलिहान, मार्ग सब जलमग्न हो जाते हैं। पुराने समय में सड़कों की ऐसी सुविधा न थी और न ही पक्के घर थे। ऐसे में कृषि-व्यापार आदि सभी कार्यों की गति मंद पड़ जाती थी। इसलिए इस अवधि में यात्राएं रोक दी जाती थीं। आषाढ़ में ही देवता शयन करने चलने जाते हैं और उठते हैं चार मास बाद देवोत्थानी एकादशी को। चूंकि यात्राएं बंद हो जाती थीं तो संभवत: इन्हीं कारणों से चौमासा गायन की परंपरा उपजी होगी। एक मार्मिक चौमासा में चार महीनों के वर्णन के माध्यम से स्त्री ने अपने सामाजिक परिदृश्य का ऐसा सहज सजीव वर्णन किया है कि पढ़कर आंखें छलक आती हैं-
आषाढ़ महीना क्यों आवश्यक है यह सोचने के लिए हमें कृषि जीवन का ध्यान रखना होगा। आषाढ़ महीना के दिनों में मौसम सामान्यतः ठंडा होता है और यह बहुत ही आवश्यक है क्योंकि इससे अधिक तापमान वाले दिनों में कृषि जीवन में असुविधाएं होती हैं। सामान्यतः समय के साथ सेवाएं और अन्य कार्यक्रम भी आषाढ़ महीने में होते हैं, जैसे जमीन को मोटा करना, मशरूम संचालन और उसके बाद अन्य फसलों को उगाना।
हालांकि, आज के समय में जमीन के मोटाई और अन्य कार्यों को संभवतः अन्य महीनों में भी किया जा सकता है, लेकिन आषाढ़ महीना अधिक सहज ह
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वर्षा ऋतु के आगमन का संदेश लेकर उपस्थित होता है आषाढ़ का महीना। आषाढ़ के बादल जड़-चेतन-अचेतन संपूर्ण प्राणियों के जीवन में अपना प्रभाव डालते हुए आकाश में छा जाते हैं। जेठ की गर्मी से तपती वसुंधरा का नन्ही-नन्ही बूंदों से अभिषेक करते हुए आषाढ़ के आगमन के साथ ही प्रकृति का रंग बदल जाता है। प्रकृति हरी हो उठती है। पेड़-पौधे आंखों को ठंडक देने लगते हैं। बदलाव के इस मोहक सौंदर्य ने कवि और कलाकार सभी को सदा से आकर्षित किया है। कालिदास ने कभी आषाढ़ के मेघ से यक्ष की विरहिणी को प्रेम संदेश भिजवाया था- ‘आषाढ़स्य प्रथमदिवसे मेघमाश्लिष्टसानुं वप्रक्रीडापरिणतगजप्रेक्षणीयं ददर्श।’
ऐसे में रीतिकाल के प्रेम मार्गी सूफी कवि मलिक मोहम्मद जायसी का प्रसिद्ध बारहमासा सहज ही स्मरण हो आता है-
‘चढ़ा असाढ़, गगन घन गाजा,
साजा बिरह दुंद दल बाजा।
मालिनी अवस्थी। वर्षा ऋतु के आगमन का संदेश लेकर उपस्थित होता है आषाढ़ का महीना। आषाढ़ के बादल जड़-चेतन-अचेतन संपूर्ण प्राणियों के जीवन में अपना प्रभाव डालते हुए आकाश में छा जाते हैं। जेठ की गर्मी से तपती वसुंधरा का नन्ही-नन्ही बूंदों से अभिषेक करते हुए आषाढ़ के आगमन के साथ ही प्रकृति का रंग बदल जाता है। प्रकृति हरी हो उठती है। पेड़-पौधे आंखों को ठंडक देने लगते हैं। बदलाव के इस मोहक सौंदर्य ने कवि और कलाकार सभी को सदा से आकर्षित किया है। कालिदास ने कभी आषाढ़ के मेघ से यक्ष की विरहिणी को प्रेम संदेश भिजवाया था- ‘आषाढ़स्य प्रथमदिवसे मेघमाश्लिष्टसानुं वप्रक्रीडापरिणतगजप्रेक्षणीयं ददर्श।’
ऐसे में रीतिकाल के प्रेम मार्गी सूफी कवि मलिक मोहम्मद जायसी का प्रसिद्ध बारहमासा सहज ही स्मरण हो आता है-
‘चढ़ा असाढ़, गगन घन गाजा,
साजा बिरह दुंद दल बाजा।
सावन में बरसती हर बूंद के साथ सज रही प्रकृति का सिंगार देख मन बरबस ही गा उठता है
सावन बरस मेह अति पानी,
मरन परीं हौं विरह झुरानी।
भरि भादौं दुपहर अति भारी,
कैसे भरों रयनि अंधियारी।
मंदिर सून पिय अंतही बसा,
सेज नाग भई दहि दहि डसा।।’
थम जाती थी दुनिया सारी
आषाढ़ माह से ही चतुर्मास प्रारंभ हो जाता है। यह चार महीने की अवधि है जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलती है। वर्षा ऋतु के चार महीने हैं-आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद और अश्विन। ग्राम समाज में और आम बोलचाल में इसे चौमासा कहते हैं। वर्षा आरंभ होते ही नदी, ताल-तलैया, पोखर, खेत-खलिहान, मार्ग सब जलमग्न हो जाते हैं। पुराने समय में सड़कों की ऐसी सुविधा न थी और न ही पक्के घर थे। ऐसे में कृषि-व्यापार आदि सभी कार्यों की गति मंद पड़ जाती थी। इसलिए इस अवधि में यात्राएं रोक दी जाती थीं। आषाढ़ में ही देवता शयन करने चलने जाते हैं और उठते हैं चार मास बाद देवोत्थानी एकादशी को। चूंकि यात्राएं बंद हो जाती थीं तो संभवत: इन्हीं कारणों से चौमासा गायन की परंपरा उपजी होगी। एक मार्मिक चौमासा में चार महीनों के वर्णन के माध्यम से स्त्री ने अपने सामाजिक परिदृश्य का ऐसा सहज सजीव वर्णन किया है कि पढ़कर आंखें छलक आती हैं-
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आषाढ़ महीना क्यों आवश्यक है यह सोचने के लिए हमें कृषि जीवन का ध्यान रखना होगा। आषाढ़ महीना के दिनों में मौसम सामान्यतः ठंडा होता है और यह बहुत ही आवश्यक है क्योंकि इससे अधिक तापमान वाले दिनों में कृषि जीवन में असुविधाएं होती हैं। सामान्यतः समय के साथ सेवाएं और अन्य कार्यक्रम भी आषाढ़ महीने में होते हैं, जैसे जमीन को मोटा करना, मशरूम संचालन और उसके बाद अन्य फसलों को उगाना।
हालांकि, आज के समय में जमीन के मोटाई और अन्य कार्यों को संभवतः अन्य महीनों में भी किया जा सकता है, लेकिन आषाढ़ महीना अधिक सहज ह