''हर चीज़ की क़ीमत दोगुनी हो गई है. अगर आप फल, सब्जियां या किराने का सामान ख़रीदते हैं तो 1500 रुपये का बिल बन जाता है.''
महंगाई को लेकर 44 साल की गृहणी कार्तिका नायक बीबीसी को अपनी परेशानियों के बारे में बताती हैं.
कार्तिका नायक का आठ सदस्यों का परिवार है और वो मुंबई के मीरा रोड इलाक़े में रहती हैं.
वह कहती हैं, ''मैं अपने सुसराल वालों के साथ रहती हूं और हमारे परिवार में बच्चे और बुज़ुर्ग दोनों हैं. इसलिए हम बहुत ज़्यादा कटौती नहीं कर सकते. हमें अच्छे खाने और फल-सब्जियों की ज़रूरत होती है. बस एक ही तरह से बचत हो रही है कि कोरोना वायरस के कारण हम बाहर नहीं जा रहे और उस पैसे का इस्तेमाल महंगाई से निपटने में कर रहे हैं.''
35 साल की हमसिनि कार्तिक एक जानेमाने अख़बार में रिपोर्टर हैं और एक बच्चे की मां भी हैं. वो मानती हैं कि दालों, फलों और सब्जियों के बढ़ते दाम चिंता का कारण बन गए हैं.
हमसिनि कार्तिक कहती हैं, ''मैं दिवाली पर अपनी बिल्डिंग में मिठाई बांटती थी और लोगों को पार्टी के लिए बुलाती थी. लेकिन इस साल हमने ऐसा कुछ नहीं किया. कोविड-19 के कारण मेरे वेतन में 10 प्रतिशत की कटौती हो गई और ऊपर से चीज़ों के दाम बढ़ गए. इसलिए हमने ख़रीदारी बंद करके ख़र्चे कम करने की कोशिश की.''
कुछ इसी तरह की कहानी 30 साल के लक्षित भटनागर की भी है. वह आईटी क्षेत्र में काम करते हैं और पुणे में रहते हैं.
लक्षित भटनागर एक कार लेने की सोच रहे थे लेकिन फ़िलहाल उन्हें इसे आगे के लिए टालना पड़ा.
वह कहते हैं, ''मैं वाक़ई कार ख़रीदना चाहता था लेकिन पेट्रोल और डीज़ल के बढ़ते दामों को देखकर मैं रुक गया. वहीं, डीलर्स भी कोई अच्छा ऑफ़र नहीं दे रहे हैं. इसलिए मैंने फ़िलहाल पैसे बचाने का फ़ैसला किया है.''
लक्षित भटनागर किराए के घर में रहते हैं और उन पर उत्तर प्रदेश में रह रहे अपने माता-पिता को संभालने की भी ज़िम्मेदारी है.
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Explanation:
महँगाई की मार
''हर चीज़ की क़ीमत दोगुनी हो गई है. अगर आप फल, सब्जियां या किराने का सामान ख़रीदते हैं तो 1500 रुपये का बिल बन जाता है.''
महंगाई को लेकर 44 साल की गृहणी कार्तिका नायक बीबीसी को अपनी परेशानियों के बारे में बताती हैं.
कार्तिका नायक का आठ सदस्यों का परिवार है और वो मुंबई के मीरा रोड इलाक़े में रहती हैं.
वह कहती हैं, ''मैं अपने सुसराल वालों के साथ रहती हूं और हमारे परिवार में बच्चे और बुज़ुर्ग दोनों हैं. इसलिए हम बहुत ज़्यादा कटौती नहीं कर सकते. हमें अच्छे खाने और फल-सब्जियों की ज़रूरत होती है. बस एक ही तरह से बचत हो रही है कि कोरोना वायरस के कारण हम बाहर नहीं जा रहे और उस पैसे का इस्तेमाल महंगाई से निपटने में कर रहे हैं.''
35 साल की हमसिनि कार्तिक एक जानेमाने अख़बार में रिपोर्टर हैं और एक बच्चे की मां भी हैं. वो मानती हैं कि दालों, फलों और सब्जियों के बढ़ते दाम चिंता का कारण बन गए हैं.
हमसिनि कार्तिक कहती हैं, ''मैं दिवाली पर अपनी बिल्डिंग में मिठाई बांटती थी और लोगों को पार्टी के लिए बुलाती थी. लेकिन इस साल हमने ऐसा कुछ नहीं किया. कोविड-19 के कारण मेरे वेतन में 10 प्रतिशत की कटौती हो गई और ऊपर से चीज़ों के दाम बढ़ गए. इसलिए हमने ख़रीदारी बंद करके ख़र्चे कम करने की कोशिश की.''
कुछ इसी तरह की कहानी 30 साल के लक्षित भटनागर की भी है. वह आईटी क्षेत्र में काम करते हैं और पुणे में रहते हैं.
लक्षित भटनागर एक कार लेने की सोच रहे थे लेकिन फ़िलहाल उन्हें इसे आगे के लिए टालना पड़ा.
वह कहते हैं, ''मैं वाक़ई कार ख़रीदना चाहता था लेकिन पेट्रोल और डीज़ल के बढ़ते दामों को देखकर मैं रुक गया. वहीं, डीलर्स भी कोई अच्छा ऑफ़र नहीं दे रहे हैं. इसलिए मैंने फ़िलहाल पैसे बचाने का फ़ैसला किया है.''
लक्षित भटनागर किराए के घर में रहते हैं और उन पर उत्तर प्रदेश में रह रहे अपने माता-पिता को संभालने की भी ज़िम्मेदारी है.
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