गाँधीजी जो कहा करते थे उसे अपने जीवन में भी अपनाते थे। वे अपने आश्रम के साथ-साथ देश के सभी लोगों को ध्यान में रखकर उनके विकास के लिए काम किया करते थे। इसलिए उन्हें केवल उपदेशक नहीं कर्मयोगी भी कहा जाता है।
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गाँधीजी जो कहा करते थे उसे अपने जीवन में भी अपनाते थे। वे अपने आश्रम के साथ-साथ देश के सभी लोगों को ध्यान में रखकर उनके विकास के लिए काम किया करते थे। इसलिए उन्हें केवल उपदेशक नहीं कर्मयोगी भी कहा जाता है।
गाँधी जी केवल उपदेशक नहीं थे, कर्मयोगी थे' चर्चा कीजिए। उत्तर: गाँधीजी जो कहा करते थे उसे अपने जीवन में भी अपनाते थे। वे अपने आश्रम के साथ-साथ देश के सभी लोगों को ध्यान में रखकर उनके विकास के लिए काम किया करते थे। इसलिए उन्हें केवल उपदेशक नहीं कर्मयोगी भी कहा जाता है।
गांधी ने कहा, " शिक्षा से मेरा मतलब है कि बच्चे और मनुष्य के शरीर मन और आत्मा में सबसे अच्छा है। साक्षरता शिक्षा का अंत नहीं है, शुरुआत भी नहीं है। यह एक ऐसा साधन है जिससे पुरुषों और महिलाओं को शिक्षित किया जा सकता है। साक्षरता अपने आप में सत्य और अहिंसा: गांधीवादी विचारधारा के ये 2 आधारभूत सिद्धांत हैं। गांधी जी का मानना था कि जहाँ सत्य है, वहाँ ईश्वर है तथा नैतिकता - (नैतिक कानून और कोड) इसका आधार है। अहिंसा का अर्थ होता है प्रेम और उदारता की पराकाष्ठा। गांधी जी के अनुसार अहिंसक व्यक्ति किसी दूसरे को कभी भी मानसिक व शारीरिक पीड़ा नहीं पहुँचाता है।कोई शिक्षा नहीं है।"
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गाँधीजी जो कहा करते थे उसे अपने जीवन में भी अपनाते थे। वे अपने आश्रम के साथ-साथ देश के सभी लोगों को ध्यान में रखकर उनके विकास के लिए काम किया करते थे। इसलिए उन्हें केवल उपदेशक नहीं कर्मयोगी भी कहा जाता है।
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गाँधीजी जो कहा करते थे उसे अपने जीवन में भी अपनाते थे। वे अपने आश्रम के साथ-साथ देश के सभी लोगों को ध्यान में रखकर उनके विकास के लिए काम किया करते थे। इसलिए उन्हें केवल उपदेशक नहीं कर्मयोगी भी कहा जाता है।
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गाँधी जी केवल उपदेशक नहीं थे, कर्मयोगी थे' चर्चा कीजिए। उत्तर: गाँधीजी जो कहा करते थे उसे अपने जीवन में भी अपनाते थे। वे अपने आश्रम के साथ-साथ देश के सभी लोगों को ध्यान में रखकर उनके विकास के लिए काम किया करते थे। इसलिए उन्हें केवल उपदेशक नहीं कर्मयोगी भी कहा जाता है।
गांधी ने कहा, " शिक्षा से मेरा मतलब है कि बच्चे और मनुष्य के शरीर मन और आत्मा में सबसे अच्छा है। साक्षरता शिक्षा का अंत नहीं है, शुरुआत भी नहीं है। यह एक ऐसा साधन है जिससे पुरुषों और महिलाओं को शिक्षित किया जा सकता है। साक्षरता अपने आप में सत्य और अहिंसा: गांधीवादी विचारधारा के ये 2 आधारभूत सिद्धांत हैं। गांधी जी का मानना था कि जहाँ सत्य है, वहाँ ईश्वर है तथा नैतिकता - (नैतिक कानून और कोड) इसका आधार है। अहिंसा का अर्थ होता है प्रेम और उदारता की पराकाष्ठा। गांधी जी के अनुसार अहिंसक व्यक्ति किसी दूसरे को कभी भी मानसिक व शारीरिक पीड़ा नहीं पहुँचाता है।कोई शिक्षा नहीं है।"
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brain marks please sister and brother